shabd-logo

यादें बचपन की कहानी 6 (दीपावली)

30 अक्टूबर 2022

23 बार देखा गया 23


बचपन वाली दीपावली


बचपन की दीपावली का मतलब छोटी दीवाली, बड़ी दिवाली और उसके बाद गंगा स्नान (कार्तिकी) की तैयारी हुआ करता था। धनतेरस और भैया दूज कम से कम हमारे गांव में तो नहीं मनाया जाता था। यह दोनों चोंचले देखादेखी और शायद टेलीविजन के प्रभाव के कारण बाद में शुरू हुए।


उन दिनों दीपावली से लगभग 15 दिन पहले से ही इस त्यौहार की तैयारी शुरू हो जाती थी। सबसे पहले घर की पुताई के लिए दुकनहा गांव से बैलगाड़ी में भरकर सफेद मिट्टी लाई जाती थी और उस मिट्टी से घर का पूरा दरवाजा पोता जाता था। इस मिट्टी से पोतने के बाद घर का दरवाजा चांदी सा खिल उठता था। पूरे घर के अंदर भी खूब जमकर साफ -सफाई की जाती थी।


घर के जो सदस्य शहर में  रहते थे, उनका भी आगमन शुरू हो जाता था। घर की बहन बेटियां भी दीपावली में बुलाई जाती थी। हम बच्चों के लिए दीपावली का त्यौहार किसी वरदान से कम नहीं होता था।  क्योंकि चाचा, भैया, बुआ आदि से हम किसी न किसी बहाने कुछ पैसे ऐंठ लिया करते थे और उन पैसों से हम छुरछुरी, छोटा तमंचा, उसमें चुटपुट करके दगने वाली रील की डिब्बी, दीवार पर फेंककर मारे जाने वाले आलू बम/ मिर्ची बम खरीद लिया करते थे।  चिटपुटिया पटाखे को पत्थर से मारकर जमीन पर भी फोड़ सकते थे। कुछ बहादुर लोग उसे जमीन पर रगड़कर पिट्ट-पिट्ट की आवाज निकाल लिया करते थे। एक सांप की टिक्की भी आती थी जो जलाने पर काले सांप जैसी राख छोड़ती थी।


जब कुछ बड़े हुए तो तमंचे का साइज बड़ा हो गया था। अब उसमें नली भी हुआ करती थी तथा चुटपुट करके दगने वाली रील की जगह इस बड़े तमंचे में एक बार मे प्रयोग होने वाली गोली (काग) का प्रयोग होता था। इन दो- चार दिनों हम अपने को किसी सैनिक या दस्यु सम्राट से कम न समझते थे और ढूंढ ढूंढ कर निशाने लगाया करते थे। ज्यादातर निशाने कुत्तों पर लगते थे। यह तो अच्छा था कि हमारे गांव में कोई कुत्ता प्रेमी नहीं था, अन्यथा हम बचपन में ही जेल की हवा खा लेते।


दीपावली के दिन आंगन की गाय के गोबर से लिपाई  की जाती थी। उस पुताई और लिपाई की विलक्षण गंध अभी भी नथुनों में भरी हुई सी लगती है। शाम को मिट्टी की बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति का पूजन होता था और उसके बाद चिरैया, गट्टा, लाई आदि का प्रसाद तथा मिठाई खाने को मिलती थी। पूजा के बाद सभी खेतों में दीपक रखे जाते थे। चरही, नाद, कुँवा, चारा काटने की मशीन, चक्की, रहट, कोल्हू, हंसिया,खुरपा, फरुआ आदि पर भी दिए रखे जाते।  घर के दरवाजे, पिछवारे, हर ताख, खिड़की और छत पर दिये या मोमबत्ती  रखी जाती थी। इस काम में हम बाबा, पापा, चाचा का कुछ सहयोग कर दिया करते थे ।


शाम गहराते-गहराते पूरा घर, मोहल्ला और गांव दीयों की रोशनी से जगमगा उठता था। उस दिन दीपावली की रोशनी में पढ़ना विद्यार्थियों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता था। ऐसी मान्यता थी कि जो इस दिन पढ़ाई करेगा, उसका पूरे साल पढ़ाई में खूब मन लगेगा।


दीपावली के दिन हम जी भरकर पटाखे फोड़ते थे। उस समय किसी सुप्रीम कोर्ट या सरकार का कोई प्रतिबंध नहीं हुआ करता था। बस कभी असावधानी से पटाखे फोड़ने पर बड़ों की डांट जरूर मिल जाया करती थी। हमारे मोहल्ले में एक राठौर फूफा थे (अभी भी हैं) जो मेरे दरवाजे से अपने दरवाजे के बीच बिना गांठ वाला एक  मजबूत धागा या रस्सी बांधकर उसमें रेलगाड़ी दौड़ाया करते थे। यह दीपावली की रात का सबसे महंगा, आकर्षक और अंतिम आतिशबाजी हुआ करती थी।


दीपावली के दिन खूब स्वादिष्ट भोजन बनता था। पूरी- सब्जी और खीर बनना तो लगभग तय हुआ करता था। हम सभी बच्चे खूब भरपेट भोजन करते और जल्दी ही सो जाया करते थे क्योंकि सुबह जल्दी उठना होता था।


दीपावली के अगले दिन हम सब बच्चे एक दूसरे से जल्दी  सोकर उठने की कोशिश करते थे क्योंकि पहले उठने वाले बच्चे को ही सबसे ज्यादा दियाली मिलती थी। जिसके पास सबसे ज्यादा दियाली इकठ्ठा हो जाती, वह अपने को उस दिन का शहंशाह समझता था।  फिर हम उन दियाली से जीत- हार का खेल खेलते थे।


दियाली को मिट्टी के एक कूरा (ढेर) में गाड़ दिया जाता। दूसरा वैसा ही मिट्टी का ढेर उसी के बराबर बनाकर खाली छोड़ दिया जाता।  जिस खिलाड़ी की बारी होती, वह किसी एक ढेर पर उंगली रखता और अगर उसकी किस्मत अच्छी होती तो दियाली उसे मिल जाती थी, नहीं तो वह दियाली दूसरे खिलाड़ी की हो जाती थी। इस प्रकार यह खेल एक खिलाड़ी के सारे दिये जीतने या घरवालों के डांटने/ पीटने तक चलता रहता था ।


इन दियों का हार-जीत का खेल खेलने के अलावा एक उपयोग यह होता कि हम लोग इन दियों को पानी में भिगोकर गीला करते तथा सुआ से इसमें  तीन तरफ से छेद करके इसे तराजू बनाकर खेला करते थे। हालांकि यह दियों से हार-जीत का खेल कुछ ही दिनों की की मौज हुआ करती थी। दो-चार दिनों बाद दीये टूट जाते या फिर उनके प्रति आकर्षण खत्म हो जाता था।


लेकिन तब तक गंगा स्नान हेतु गेंगासों जाने के लिए लढ़ीया (बैलगाडी) को औङ्गने (धुरी में काला तेल लगाने), उसके पहियों में हाल (लोहे की रिंग) चढ़वाने, बैलों की सींग में तेल लगाने, उन्हें साफा, रंगीन झूल आदि पहनाकर सजाने-संवारने और सूरन की सब्जी बनाने की तैयारी होने लगती।

14
रचनाएँ
यादें बचपन की
5.0
पुरानी यादें ताजा
1

यादें बचपन की कहानी 1 (शिक्षालय)

30 अक्टूबर 2022
20
1
0

यादें बचपन की चलो देखते हैं फिर एक समय पुराना, शिक्षालय के चारों यार, यारों का था याराना, हाथ में कपड़े के फटे हुए होते थे थैले, खेल खेलकर कपड़े भी होते थे मेले... आज जब पुराने शिक्षा

2

यादें बचपन की कहानी-2 (घरौंदा)

31 अक्टूबर 2022
3
0
0

बचपन मे बहन मिट्टी का घरौंदा बनाती थी। मिट्टी का सात-आठ दिन लगकर फिर दीवाली की रात उसकी पूजा कर उससे मिट्टी के बर्तन( चुकिया) में प्रसाद रखती थी लड्डू, बनिया बगैरह जो कि सुबह

3

यादें बचपन की कहानी- 3(वो दिन)

1 नवम्बर 2022
2
0
0

वो दिन,, जो भूले न जा सके,, जब हम स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था..!तब कैमलिन की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर

4

यादें बचपन की कहानी 4 (पुताई/पेंट)

30 अक्टूबर 2022
9
1
0

यादें बचपन की आज के समय में पेंट करना बहुत आसान काम है, पेंट का डिब्बा खोलो, रोलर डुबाओ और घुमा दो, हो गया पेंट। एक समय था कि हमारे बचपन का कि एक छोटे से घर कि पुताई में पूरे 10,15 दिन लग जाते थे

5

यादें बचपन की कहानी 5 ( रस्सी का बना बीड़ा या चौकी)

30 अक्टूबर 2022
4
1
0

"यादें बचपन की " इस पीले भूरे रंग की वस्तु को देख रहे हैं ना उसे शायद बहुत से लोग पहचान भी रहे होंगे। नई पीढ़ी और शहरों के लोग शायद ना भी पहचान रहे होंगे। तो आइए बताते हैं इसके बारे में। यह हम

6

यादें बचपन की कहानी 6 (दीपावली)

30 अक्टूबर 2022
3
2
0

बचपन वाली दीपावली बचपन की दीपावली का मतलब छोटी दीवाली, बड़ी दिवाली और उसके बाद गंगा स्नान (कार्तिकी) की तैयारी हुआ करता था। धनतेरस और भैया दूज कम से कम हमारे गांव में तो नहीं मनाया जाता था। यह दो

7

यादें बचपन की कहानी 7 (खाना, मस्ती)

7 मई 2023
1
0
0

हम बचपन में छुट्टी के बाद खाना खाते ही शुरु हो जाते थे..... फिर जब शाम को वापस खाने का समय होता तब ही वापस घरों को रूख करते थे। आजकल के बच्चों का बचपन इंटरनेट ने छीन लिया है... काश वो बिना जि

8

यादें बचपन की कहानी 8 (स्कूल, स्लेट, पेंसिल, थैला)

7 मई 2023
2
0
0

यादें बचपन की पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें... पढ़ाई का तनाव हमने पेन्स

9

यादें बचपन की कहानी 9 (दोस्त का आश्य)

7 मई 2023
1
0
0

दोस्ती एक ऐसा शब्द है जिसके लिए शायद शब्द भी कम पड़ जाय, पर मैं डरता हूँ दोस्ती करने से ऐसा नहीं है कि विश्वास नहीं रहा पर कुछ बचा भी नहीं इस रिश्ते में , जो कि साथ रखा जाए,  मन बहुत होता है  उसे सब

10

अगाध मित्रता

7 मई 2023
1
0
0

मित्रता... सखा सोच त्यागहु बल मोरे । सब विधि घटब काज मैं तोरे ।। मित्र तो राम की तरह होना चाहिए जो ये कहे कि मेरे भरोसे अपनी सारी चिंता छोड़ दो मित्र... अपनी पूरे सामर्थ्य लगा कर

11

सच्चे दोस्त

7 मई 2023
1
0
0

यारों की यारियां... उन तीनों को होटल में बैठा देख, रमेश हड़बड़ाहट सा गया... लगभग 22 सालों बाद वे फिर उसके सामने दिखे थे... शायद अब वो बहुत बड़े और संपन्न आदमी हो गये थे... रमेश को

12

बचपन के दोस्त

7 मई 2023
1
0
0

याद आई मुझे बचपन की दोस्त जो रूठ जाने पर मुझे मना लिया करती थी खाना नहीं खाने पर खिला दिया करती थी बीमार पड़ जाने पर मेरा खयाल रखा करती थी माना की वो गरीब थी पर दिल की वो सबसे अमीर थी

13

बच्चें मन के सच्चे

11 मई 2023
1
0
0

बच्चें मन के सच्चे... बचपन में याद है ….. अब इस तरह का आशीर्वाद कम ही मिलता है….. जब कोई रिश्तेदार व परिवार वाले हमारे घर आते थे तब फल व खिलौने लेकर आते थे और जब उनके वापस लौट

14

दो दोस्त

4 फरवरी 2024
1
0
0

(निकु और नीशू दो दोस्त की दोस्ती) (नीकु और नीशू दोनों दोस्त आपस में वार्तालाप कर रहे हैं)निकु - ये बताओ नीशू दोस्त! आज कई दिनों के बाद हम दोनों दोस्त विद्यालय जा रहे हैं। क्या तुमने गृहकार्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए