मित्रता...
सखा सोच त्यागहु बल मोरे ।
सब विधि घटब काज मैं तोरे ।।
मित्र तो राम की तरह होना चाहिए जो ये कहे कि मेरे भरोसे अपनी सारी चिंता छोड़ दो मित्र...
अपनी पूरे सामर्थ्य लगा कर तुम्हारा हित करूंगा, तुम्हारे काम आऊंगा।
तुलसी बाबा ने जिस अगाध मित्रता को लिखा दुनिया में इससे सुंदर, सुखद परिभाषा मेरी दृष्टि में दूसरी नहीं।राम जैसा सबल मित्र प्रत्येक सुग्रीव के भाग्य में मिले यही कामना है।