मैं मंजिल था तुम राही थे।।
न मैं रोक सका न तुम रुके थे।
ऐसी जिद क्यों जो मुड़कर भी न देखा
मैं रोया बहुत था तुम सुन न सके थे।।
कहना चाहा मैंने बहुत कुछ
आंसू बन कर बह गए लफ्ज दिल मे जो दबे थे।।
न कोई शिकवा न शिकायत की हमसे
की भी तो उसे हम पूरा कर न सके थे।।
इतनी बेरुखी क्यों? बह रहे है अश्क
तुम सामने रहकर भी पोछ न सके थे।।
आये थे तुम एक रिश्ता बनकर बहन का
खुली राखी तुम दोबारा बांध न सके थे।।
करेगे विदा हंसकर कसम ये खाई थी
अब रो रहे हैं ,मगर तुम चुप करा न सके थे।।