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बहन के लिये

1 दिसम्बर 2021

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मैं मंजिल था तुम राही थे।।
न मैं रोक सका न तुम रुके थे।

ऐसी जिद क्यों जो मुड़कर भी न देखा
मैं रोया बहुत था तुम सुन न सके थे।।

कहना चाहा मैंने बहुत कुछ
आंसू बन कर बह गए लफ्ज दिल मे जो दबे थे।।

न कोई शिकवा न शिकायत की हमसे
की भी तो उसे हम पूरा कर न सके थे।।

इतनी बेरुखी क्यों?  बह रहे है अश्क
तुम सामने रहकर भी पोछ न सके थे।।

आये थे तुम एक रिश्ता बनकर बहन का
खुली राखी तुम दोबारा बांध न सके थे।।

करेगे विदा हंसकर कसम ये खाई थी
अब रो रहे हैं ,मगर तुम चुप करा न सके थे।।

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रचनाएँ
कविता सागर
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