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बहू की रिहाई

प्रवीण श्रीवास्तव

1 अध्याय
4 लोगों ने खरीदा
5 पाठक
2 सितम्बर 2023 को पूर्ण की गई
ISBN : 978-93-94582-76-7

लघु उपन्यास ‘बहू की रिहाई’ मेरा तीसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा प्रथम लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हुआ, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही कॉमन बात ये थी कि बैंकिंग जैसे नीरस विषय को भी एक रोचक कहानी के रूप में ऐसी शैली में लिखा गया था कि प्रारम्भ के दो चार पन्ने पढने के बाद पाठकों ने उसे एक बार में ही पूरा समाप्त किया. इन प्रतिक्रियाओं से मेरा उत्साह बढ़ा और तत्पश्चात मेरी दूसरी कृति ‘माही’ के रूप में आपके समक्ष आई. ‘माही’ को भी पूर्व की भांति काफ़ी सराहा गया. अब ये मेरा तीसरा उपन्यास ‘बहू की रिहाई’ आपके समक्ष है. आशा करता हूँ कि इस उपन्यास के भी दो चार पृष्ठ पढने के बाद आप इसे पूरा पढ़े बिना नहीं रह पाएंगे. ‘बहू की रिहाई’ एक ऐसी बेटी की कहानी है जो कि विवाह के पश्चात एक अनजान घर में बहू बनकर जाती है और वहाँ पर उसे प्रारम्भ से ही अनेक अकल्पनीय विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. वो बहू भरसक प्रयास करती है कि वो अपने पति एवं ससुराल वालों की घनघोर अमानवीय प्रताड़नाओं को झेलते हुए अपना वैवाहिक जीवन बिखरने से बचा ले. एक लम्बे समय तक उसका ये संघर्ष एवं द्वन्द चलता रहता है और अन्त में वो अपने जीवन के लिए एक स्वतन्त्र निर्णय लेने को बाध्य हो जाती है.  

bahu ki rihai

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