प्रिय पाठकों, लघु उपन्यास ‘माही’ मेरा दूसरा उपन्यास है. इससे पूर्व मेरा लघु उपन्यास ‘बैंक अधिकारी: बिखरते ख्य्वाब’ प्रकाशित हो चुका है, जिसको देश भर के पाठकों ने विशेष रूप से बैंकर्स ने बेहद पसंद किया. मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिली, उनमें सबमें एक ही कॉमन बात ये थी कि बैंकिंग जैसे नीरस विषय को भी एक रोचक कहानी के रूप में ऐसी शैली में लिखा गया था कि प्रारम्भ के दो चार पन्ने पढने के बाद पाठकों ने उसे एक बार में ही पूरा समाप्त किया. इन प्रतिक्रियाओं से मेरा उत्साह बढ़ा और परिणाम मेरी नवीन कृति ‘माही’ के रूप में आपके समक्ष है. आशा करता हूँ कि इस उपन्यास के भी दो चार पृष्ठ पढने के बाद आप इसे पूरा पढ़े बिना नहीं रह पाएंगे. ‘माही’ एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसमें एक साल की बच्ची माही का अपहरण हो जाता है. इंस्पेक्टर राघव उसे तलाश करने का भरपूर प्रयत्न करता है किन्तु उसका कोई पता नहीं चल पाता है. इंस्पेक्टर राघव द्वारा माही के केस के इन्वेस्टीगेशन में शक की सुई किसी एक बिंदु पर नहीं टिक पाती है और एक के बाद एक रहस्य सामने आते हैं जो कि अथाह निश्छल प्रेम, करुण वियोग, प्रतिशोध, घृणा, उपकार के रेशमी किन्तु कटीले धागों से गुंथे होते हैं और इंस्पेक्टर राघव की इन्वेस्टीगेशन का अन्त मुख्य अपहरणकर्ता की गिरफ़्तारी और अबोध माही की हत्या की स्वीकारोक्ति के रूप में होता है. इसके बाद भी पीड़ित परिवार को एक और गुत्थी का सामना करना पड़ जाता है.
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