बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को , उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .” ........................................................................ ”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको , हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .” .........................................................