रोशनी को गुस्सा आ गया, बैग सोफे पर फेंक दिया और चिड़चिड़ाती हुई बोली ,क्या पूछती हो मां , घड़ी में बारह बजे हुए हैं और आज मैं तो स्कूल गई ही.........." वह "नहीं " कहती जब तक उसने अपनी जुबान पर ताला लगा दिया और अपना हाथ होंठों पर रखते हुए बैठ गई।
क्या ,...........वीणा ने पूछा ," तू स्कूल नहीं गई " तो फिर कहां थी।
नहीं मां , मैं ऐसा थोड़े ही कह रही थी , वह तो मेरी जुबान ही स्लिप हो गई। मै स्कूल तो गई थी , लेकिन आज किन्हीं कारणों से लंच में छुट्टी हो गई हो वापस आ गई ।
वीणा कहने लगी, " रोशनी तुम क्या कहना चाहती हो , और मुझसे क्या छुपा रही हो , वास्तव में कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।
अगर तेरे साथ कुछ घटित हुआ हो तो बता दे बेटी , समय रहते हुए उसका हल निकाल नहीं जायेगा । "
रोशनी क्या कहती और क्या नहीं कहती , मां के बार-बार पूछने पर भी वह कुछ नहीं कह पा रही थी।
फिर भी वीणा ने चेतावनी देते हुए कहा दिया था , " बेटी जमाना खराब है , तू सयानी हो गई है , व्यर्थ में किसी के झूठे बहकावे में आकर हमारे घर की इज्जत को मत उछाल देना , हम लोगों का इस शहर में बड़ा मान-सम्मान है और तुम हो हमारे घर की इज्जत ।"
हम चाहते हैं कि तुम अच्छी पढो-लिखो और अच्छी नौकरी हासिल करके हमारा नाम रोशन करो , तुम हमारे घर की रोशनी है।
" रहने दो मां.... पता नहीं, न जाने क्या-क्या कहती रहती हो , आपके अंदर विश्वास नाम की चीज है , जो मेरे ऊपर विश्वास रख सकोगी।"
"रोशनी ने अपनी मां के सामने मुंह ऐंठते हुए कहा और वह वहां से खड़ी हुई , कमरे के अंदर चली गई । "
" आजकल के बच्चे क्या होते जा रहे हैं ? मां बाप को कुछ समझते ही नहीं , अब इस लड़की को ही देख लीजिए , कितनी अकड़ में बात कर रही है , आखिरकार इन्हें घमंड किस बात का है, हम लोग इनकी सुविधाओं के लिए क्या नहीं करते हैं ?
वक्त बदल गया , और इन्होंने उस वक्त को नहीं देखा था , जब किसी लड़की का घर से बाहर निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता था , पढ़ाई तो बड़े दूर की बात है । आज आजादी मिली है तो उसका मिसयूज कर रही है।
मां बाप इनके सजाने के लिए ताउम्र जी-तोड़ मेहनत करते हैं , तब जाकर इन्हें अपना भविष्य देते हैं और ये है जो मां बाप से ही अकड़ने लगते हैं।
सपने उनके मेहनत हमारी , अपनी इच्छाओं को दबाकर उनके सपने सजाते हैं , फिर भी माता-पिता को निराशा ही महसूस होती है। "
वीणा अपने कामों में व्यस्त हो गई , रोशनी मां के सामने इसलिए नहीं रहना चाहती थी , क्योंकि उसकी मां उसके ऊपर सवाल पर सवालों के गोले दागे जा रही थी । मानो रूस यूक्रेन के ऊपर गोले दागे जा रहा हो।
रोशनी ने अपना बैग कुर्सी पर पटका और माथा पकड़ कर बैठ गई । इस समय रोशनी बहुत मुसीबत में थी। उसे तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे , एक तरफ उसके बायफ्रेंड ने उसे धोखा दे दिया और दूसरी तरफ उसकी मां उसके ऊपर शक करने लगी थी।
समस्या बड़ी विकराल थी और इस समस्या का हल खोज पाना बड़ा ही मुश्किल था ।
शुक्र है ,जो इस समय उसके पिताजी अपनी नौकरी पर गये थे , अन्यथा इस समय इस तूफान को संभाल पाना बड़ा ही मुश्किल था ।
रोशनी के पिता दीपक एक कंपनी में सुपरवाइजर के पद पर काम करते थे। स्वच्छ छवि और मेहनती इंसान ,जो स्वाभिमान के साथ अपना जीवनयापन कर रहे थे। आज तक उनके परिवार या स्वयं के ऊपर किसी तरह का कोई लांछन नहीं था ।
नम्रता के साथ सभी के साथ मेलजोल और भाई-चारे का जीवन जीने वाले दीपक का सपना था कि वह अपना जीवन बिना किसी का दिल दुखाये और सत्य और ईमानदारी के साथ व्यतीत करें ।
उनके तीन संतानें थी , सागर जो अपनी दस साल का था , वह रोशनी से छोटा लड़का था और उसे छोटी लड़की अंजली जो अभी सात साल की थी ।
हालांकि वीणा और दीपक का मन नहीं था कि वे तीसरा बच्चा पैदा करें लेकिन दो लड़के की उम्मीद में उन्हें वरदान में दो लड़कियां मिल गई।
" अक्सर हर समाज में हर परिवार के व्यक्ति का एक सपना होता है कि वह उसके घर में कम से कम दो लड़के हो तो घर को आने बढ़ाने में मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता , क्योंकि लड़की को हमेशा ही पराये घर की वस्तु समझा जाता है। "
रोशनी बड़ी होने के कारण अपने माता-पिता की बहुत ही प्रिय थी । वीणा और दीपक उसे बड़े प्रेम से रखते थे। कभी भी कुछ ना कहते और ना ही उसे किसी तरह की मुसीबतों में देखना चाहते थे।
लेकिन जैसे ही उसने किशोर अवस्था में कदम रखा ,उसका व्यवहार और आचरण बदलते हुए देखा जा रहा था ।
" घर में फैसिलिटी के होते हुए , सभी के प्रेम और लाडलेपन से पली थी, रोशनी अपने दादा-दादी की बहुत प्रिय थी , लेकिन कुछ दिनों से रोशनी के माता-पिता और दादा-दादी में थोड़ा विवाद के कारण वे उसके चाचा के पास रहते थे , वे किसी दूसरे शहर में नौकरी करते थे। उन्हें यहां से गए हुए दो साल हो जाने के कारण ही माता-पिता का नियंत्रण कम हो गया और दादा-दादी का नियंत्रण रोशनी के ऊपर से हट गया , यही कारण था कि वह अपने आप को इतनी आजादी महसूस करने लगी थी कि पंद्रह साल की उम्र में ही उस लड़के के साथ अटैच हो गई थी । "
आज रोशनी का दिमाग खराब था , वह सिर पकड़कर कुर्सी पर बैठी हुई थी , उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?
डिप्रेशन की दुनिया में उसे अपनी समस्या का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था । वह इस समय चिंतित अवस्था में क्या कुछ सोच पायेगी , उसकी जिंदगी किस मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है , इस बात की चिंताएं उसे याद आ रही थी ।
वीणा ने भी सोच लिया कि अब वह घर के अंदर जाकर बंद हो गई तो उससे कहने कि क्या फायदा था ? इसलिए वह वाशिंग मशीन के साथ कपड़े धोने में व्यस्त हो गई।
क्रमशः