राजा सूर्यमल महल के गलियारे में चहल कदमी कर रहे थे । चेहरे से बहुत ही बेचैन नजर आ रहे है । पसीने की बूंदों के साथ उनके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी ।
बाहर पूर्णिमा का चांद अपनी रोशनी से पूरे जगत को जगमगा रहा था । माहौल बहुत ही खुशनुमा लग रहा था, ताल की लहरों को मदुरिम स्वर सुनाई दे रहा था । पर राजा को इस सौंदर्य से मतलब नही था । उसके महल में तो बरसो से अमावस का अंधकार था । कभी कभी , उम्मीद की रोशनी आती तो थी पर वह जुगनू की तरह क्षणभंगुर थी जो हमेशा के लिये रोशनी में परिवर्तित नही होती थी ।
इतने में राजमाता रोहिणी देवी का प्रवेश होता है , वह आकर कहती है। बेटा परेशान मत हो सब सही हो जाएगा ।
राजा कहते हैं ,"माँ मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है मैंने क्या गलती कर दी, मैं प्रजा का इतना ख्याल रखता हूं , दान धर्म पुण्य सब करता हूं , साधु सन्यासियों की सेवा करता हूँ । यज्ञ हवन करता हूँ , ऐसा कौनसा पुण्य कर्म है जो मैं नही करता ।"
फिर कुछ देर खामोशी के बाद राजा साहब कहते है
"पर ऐसा क्यो की मुझे खुशी नसीब नहीं हो रही है "।
रानी माँ कहती है ,बेटा ऐसी कोई बात नहीं है तुम धीरज रखो । मैं जानती हूं एक न एक दिन भगवान अवश्य तुम्हारी सुनेगा ।
इतने में दाई आ आती है ।
सूर्यमल उसकी तरफ देखते हैं उसका चेहरा देखते ही समझ जाते हैं कि कुछ अप्रिय खबर ही लेकर आई है ।
फिर भी कुछ अच्छी खबर पाने की इच्छा या मन मे दबी चाह की इस बार कुछ नही होगा , ने उन्हें दाई के जवाब का इंतजार करवाया ।
दाई बस इतना ही कहती है इस बार भी वही हुआ ।
राजा साहब चिल्लाकर बोलते है निकल जाओ यहां से यह खबर सुनने के लिए नहीं बुलाया था तुम्हे ।
रानी माँ कहती है , इसमें इसकी क्या गलती है यह तो सब भाग्य का खेल है ।
वह दाई से पूछती है कि क्या हुआ दाई मां कहती है रानी चंद्रभागा का बेटा भी पेट मे ही खत्म हो गया । छः मासा बच्चा कैसे बचता ।
रानी माँ कहती है हमें भी समझ में नहीं आ रहा है ऐसा क्या है कि दोनों रानियों के बच्चे जन्म से पहले ही खत्म हो जाते हैं ।
राजा सूर्यमल सर पर हाथ रख कर बैठ जाते हैं ।
दाई माँ कहती है , यह सब भाग्य का खेल है , तभी तो आठवी बार भी ........
उसके शब्द मुँह में ही रह जाते है ।
राजा सूर्यमल चिल्ला कर कहते हैं क्या कहना चाह रही हो तुम क्या हमारे भाग्य में संतान नहीं है या हमारी वजह से ऐसा हो रहा है ।
दाई डरते डरते कहती है जान के अमान पाऊ राजा साहब माफी दे दीजिए ,
फिर अटकते अटकते कहती है , जी वो ..... मेरे कहने ......का यह मतलब ........नहीं .......था मैं तो यह कह रही ......थी कि..... शायद हमारी दोनों रानियों के भाग्य में संतान....... नहीं है ।
राजा सूर्यमल गुस्से से बोलते है निकल जाओ तुम यहां से ।
दाई तुरन्त ही निकल जाती है ।
उसके बाद मायूस होकर राजा सूर्यमल रानी मां से कहते हैं मां देखो तुम अब छोटे लोग भी मुझे यह सब कहने लगे है तुम ही बताओ मैं क्या करूं ।
रानी माँ , सूर्यमल को समझाते हुए कहती है , तुम नही अब जो करना है वह मैं करूंगी । कल ही कुलगुरु और राज गुरु दोनो से मुलाकात करती हूं ।
....................................................................
नीलांजना तालाब के पास एक पत्थर पर बैठी है , और पानी के साथ अठखेली कर रही है । पीछे से कमला ने आकर उसे टोका ,
"क्यो नीलू आज फिर चाची ने डॉट लगाई है ।"
एकदम से नीलू के मुंह से निकला "तुम्हे कैसे पता लगा"
कमला ने कहा मुझे नही तो किसे पता होगा तुम्हारी बचपन की सहेली हूँ ।तुम्हारी हर आदत जानती हूं ।तुम जब भी उदास होती हो यहाँ आ जाती हो ।
नीलू पूछती है पर तुम यहाँ क्यो आई हो ।
कमला अरे तुम्हे तो कुछ समझता ही नही । बेचारी दादी के बारे में तो सोचा करो वह आई थी तुम्हे ढूंढते हुए , तो मैं उन्हें अपने घर बैठाकर तुम्हे लेने आ गयीं ।
ओह्ह मैं दादी को कैसे भूल गयी , अपने सिर पर हाथ मारकर कहती है ।
चलो कमला हम चलते है ।
नीलांजना बहुत ही साधारण शक्ल सूरत की लड़की थी , गेहुआ रंग , नाटा कद , फूली हुई नाक दिखने में बिल्कुल साधारण सी पर आंखे उसकी बहुत सुंदर थी , नीली आंखे, और हिरणी की तरह थी , बहुत ही गहराई थी उसमें । इन्ही आंखों पर दादी ने उसका नाम नीलांजना रखा था । माँ बाप बचपन मे ही भगवान के पास चले गये थे । चाचा चाची के घर बोझ की तरह रह रही थी , दिन रात उनके ताने नश्तर की तरह चुभते थे उसको , उन्हें सुनते हुए ही बढ़ी हुई थी वह ।
वह तो दादी का प्यार था जो उसके घावों पर मरहम का काम करता था ।
कमला के घर पहुचकर नीलांजना ने दादी के गले लग गयी ,
पर दादी गुस्सा थी उन्होंने , कमला की माँ को देखते कहा पंडिताइन मैं इससे बात नही कर रही , तू बोल दे इससे ,की घर चली जा चाची रास्ता देख रही है ।
नीलू अपनी दादी के गालों को हाथ पर रखकर बोली दादी मेरी प्यारी दादी मुझसे नाराज हो क्या ,
दादी कुछ नही बोलती है ,
नीलू कहती है दादी आप मुझसे बात नही करोगे तो मैं बहुत दूर चली जाऊंगी । कभी वापस नही आऊंगी ।
दादी उसे गले लगाती है और कहती है कभी ऐसी बात मत करना ।
पर कमला कहती है अरे दादी एक दिन तो इसे जाना ही है ,
"कहां "सब एक साथ पूछते है
तो कमला कहती है , अरे बाबा ससुराल और कहां,
नीलांजना उसके पीछे कमली की बच्ची कहकर दौड़ने लगती है ।
दादी पंडिताइन से कहती है , मैं एक काम से भी तेरे पास आई थी, फिर अपने साड़ी के पल्लू के नीचे से एक कागज निकालती है और कहती है यह मेरी नीलू की कुंडली है , पंडितजी को दिखाकर पूछना इसके ब्याह का योग कब है ।
फिर आंखों में आये आंसू को पोछते हुए कहती है , छोरी ब्याह लायक हो गयी पर इसके चाचा चाची को तो कोई फिकर ही नही है ।
पंडिताइन कहती है , अम्मा तुम फिक्र मत करो , मैं आज रात को ही पंडितजी को कुंडली दिखा दूंगी
क्रमशः