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नीलांजना भाग 8

5 दिसम्बर 2021

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     नीलांजना ने सारी रात आंखों में काट दी , पर राजा जी के दर्शन नही हुए । 

     सुबह उसे राजमहल अजनबी से लग रहा था । वैसे तो सब सुविधा थी ,पर कहने को अपना कोई नही था । 

   जिससे अपने मन की बात कह सके , घर की ,दादी की कमला की बहुत याद आ रही थी । 

    किससे कहे अपना दुख, बस झरोखे में से उपवन को देखकर थोड़ी देर के लिये मन को बहला  रही थी ।

    रानी मां सूर्यमल के पास जाती है और कहती है हमने सुना है कल रात आप रानी नीलांजना के पास नहीं गए थे  

        सूर्यमल कहते हैं आपने सही सुना था रानी मां ।

     पर क्यों नहीं गए थे ,कल आपकी सुहाग की रात थी और आपको उनके साथ ही होना चाहिए था ।

     सूर्यमल कहते हैं रानी मां हमने आपकी बात मान कर उस लड़की से विवाह तो  कर लिया है पर उसे अपना नहीं पाएंगे ।

      रानी मां कहती है सूर्यमल तुम्हें पता नहीं है क्या हमने तुम्हारी शादी उस लड़की से किसी उद्देश्य से की है ।

     उस उद्देश्य को तो पूर्ण करो ।

      सूर्यमाल  कहते हैं आप मुझ पर इतना दबाव नहीं बना सकती मेरा मन  वहाँ जाने का नहीं हो रहा है ।

    तो रानी मां कहती है मैं राजमाता हूं मैं तुम्हें हुक्म दे सकती हूं और उसका तुम्हें पालन करना ही पड़ेगा तुम्हें नीलांजना के पास जाना ही पड़ेगा । एक बार तो जाना ही पड़ेगा ।

    फिर राजमाता चली जाती है ।

     सूर्यमल आखिरकार मन मारकर  नीलांजना के महल पहुंचता है ।

       वह देखता है एक कमनीय काया वाली लड़की जिसके रेशमी बाल  कमर तक लहरा रहे है ,  वह झरोखे के बाहर देख रही थी । राजा समझ जाते हैं कि यही सुंदरी नीलांजना होगी ।

    वे  आवाज लगाते हैं नीलांजना, 

     नीलांजना किसी पुरुष आवाज से अपना नाम सुनकर चौक कर पीछे मुड़कर देखती है और कहती है कौन।

      राजा उसे देखकर  कहते हैं तुम कौन हो ।


    नीलांजना कहती है मैं नीलांजना  ।

    राजा कहते है नहीं तुम नीलांजना नहीं हो सकती हमने तो सुना है  वह अतीव सुंदरी है , और तुम ...... तुम  नीलांजना नही हो सकती । 

      नीलांजना  राजा सूर्यमल को देखकर बहुत खुश हो  जाती है । वह कहती है आप राजा साहब है ,  अहो भाग्य मेरे स्वामी मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए  और उनके पैरों में गिर जाती है  ।

     राजा साहब चार कदम पीछे हट जाते हैं और कहते हैं नहीं तुम नीलांजना नहीं हो ।

       नीलांजना विनम्र स्वर में कहती है ,स्वामी आप किसने कह दिया मैं सुंदरी .......... 

     नीलांजना पूरा वाक्य नही बोल पाती है ।

         राजा सोचते है ,  कल रात ही को तो चंद्रभागा ने बताया की  नीलांजना अति सुंदरी है अद्भुत सौंदर्य है उसका । क्या वह विनोद कर रही थी मेरे साथ  ।

     फिर जोर से चिल्ला कर कहते है नहीं, नहीं, हम तुम्हारे साथ नहीं रह सकते हम तुम्हारा चेहरा नहीं देखना  चाहते ।
यह कहकर  राजा सूर्यमल चले जाते हैं ।

     नीलांजना ठगी सी उन्हें जाते हुए देखते रहती है वह सोचती  है मुझसे क्या भूल हो गई स्वामी ने मुझे क्यो ऐसा कहा , 

     फिर वह दर्पण में अपना मुख देखती है और कहती है मैं सुंदर ही तो हूं ।

      फिर चिल्ला कर कहती है  नहीं sssss ,नहीं मैं सुंदर नहीं हूं ।

      देखो, देखो   मेरा यह  रंग ,क्या रानियों का रंग ऐसा होता है  । और वह अपने घुटनों के बल बैठ कर रोने लगती है  । 

     दासी जमुना आकर उसे उठाती है और कहती है रानी साहिबा आप पलंग पर बैठ जाइए नीलांजना उससे भी पूछती है मैं सुंदर नहीं हूं क्या । जमुना कहती है  नहीं आप बहुत अच्छी हो रानी साहिबा ।

       नीलांजना कहती है  नहीं तुम झूठ बोलती हो  ।

     तुम भी मेरी दादी की तरह ही हो तुम झूठ बोलती हो।

     जमुना कहती नहीं रानी साहिबा एक दिन राजा साहब जरूर आएंगे ।


     नीलांजना को रोना आ जाता है , वह फुट फुट कर रोने लगती है और कहती है  जाने कब खत्म होगा मेरा इंतजार ।

     .............................................................

         नीलांजना महीनों इंतजार करती रही , पर उसका इंतजार था कि खत्म नही  हो रहा था । 

     राजा सूर्यमल फिर कभी उसके महल में  नही आये, उस अभागन ने अभी तो उन्हें जी भर कर देखा भी नही था ।

      राजा तो राजा,  कभी रानी मां ,चंद्रभागा और सूर्यप्रभा किसी ने भी उसके महल में आकर झांका भी  नहीं की वह जिंदा  है या मर गई ।

      किसी को उसकी फिक्र नहीं थी । जैसे सबने उसे भूला ही दिया था । रानी माँ ने भी अब सूर्यमल को  कहना  छोड़ दिया था । कोई नही था जो  नीलांजना  के पक्ष में कुछ बोले ।

     और  नीलांजना अपने बदन पर उबटन लगाती , दिन में चार चार बार नहाती , अपने बालों को सवांरती रहती । नए-नए वस्त्र गहने पहनती ।

    पागलो कि तरह  दर्पण में  देख कर खुद को निहारती रहती ,  और कुछ भी कमी आने पर बार-बार वस्त्रों ,गहनों को बदलती रहती ,  उसे अपने खाने पीने की चिंता नही थी , मूर्छित होकर बार बार गिर पड़ती ।

     उसकी यह दशा देखकर दासियाँ दुखी रहती । पर वे भी बेचारी किनसे कहती ।

    उन्हें लगता कही रानी जी पागल तो नही हो गयी । वे अपनी बुद्धि से जितना हो सकता उतना उसका उपचार कर देती ।

    पर समय अपनी चाल चल रहा था , और उसने नीलांजना के भाग्य में कुछ और ही लिख रखा था ।

  रानी प्रभावती का छठवां महीना चल रहा था और अचानक से उन्हें तकलीफ होने लगी । 
    दाई माँ , वैधजी सबने अपने अनुभव से जी जान लगा दी पर  उनके अजन्मे बच्चे को बचा नही सके । पूरा राज्य शोक मे डूब गया ।

     रानी माँ सूर्यमल को कहती है हमने तो पहले ही कहा था , पर आपको तो अपनी जिद करनी थी । हमे तो  अपना कुलदीपक चाहिये था बस , हम नीलांजना को इसी लिये तो लाये थे । पर आपने उसकी भी कद्र नही की

    राजा सूर्यमल वहाँ से निकल जाते है , और सीधे नीलांजना के महल में पहुचते है ।


क्रमशः 

    

    


         

     

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