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नीलांजना भाग 7

29 नवम्बर 2021

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           रानी माँ सोचती है कही मैने गलत निर्णय तो नही ले लिया, 

     मैंने यह तो देखा कि इस लड़की की कुंडली बहुत अच्छी है पर यह नही सोचा कि यह दिखती कैसी होगी । सूर्यमल  इसे अपना भी पायेगा या नही ।

और अब तो प्रभावती भी गर्भवती है , उसकी संतान बच गयी तो इस लड़की से शादी करने का कोई मतलब ही नही रह जायेगा ।

      फिर तुरन्त ही उन्हें कुलगुरु की बात याद आती है कि दोनों रानी और  और राजा के मिलन से संतान का योग तो बनता है पर संतान प्राप्त नहीं होती है । और इस बार भी ऐसा हो सकता है ।

    फिर नीलांजना की कुंडली तो खुद उन्होंने ही मिलाई है तो इसके लिए कोई शक की गुंजाइश रह नहीं सकती,  यही है जो हमें हमारे राज्य का उत्तराधिकारी दे सकती है ।

    फिर मैं सोचती है रंग रूप का क्या है ,  यह गांव की साधारण सी लड़की है । और ज्यादा  तैयार  भी नहीं हुई है अच्छे से बनाव श्रंगार करेगी तो सब अच्छी लगने लगेगी । 

     आंखें तो कितनी सुंदर है बिल्कुल झील सी गहरी नीली इसकी ।

     फिर वह नीलांजना को सब उपहार देती है और उनकी नजर उतारती है  ।

     दादी, चाचा चाची ,और  गांव वालों से बात भी करती है  । 

       उन्हें बताती है कि राजा जी यह विवाह साधारण तरीके से ही कर रहे हैं इसलिए हम लोग मंदिर में गंधर्व विवाह कर लेंगे और उसके लिए मंडप और बाकी रस्मों की जरूरत ही नहीं पड़ती है ।

      दादी को अजीब तो लगता है उन्होंने तो नीलू की शादी के लिए बहुत से अरमान सजा के रखे थे पर  रानी माँ के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं थी सब बस उनकी हां में हां मिला रहे थे रानी उठकर खड़ी हो जाती है ।  तो सब लोग उनके सम्मान में खड़े होकर अभिवादन करते है ।

    फिर रानी माँ कहती है । ठीक है अब हम जाते हैं हमें थोड़ी तैयारी करनी है अब शाम को हम सब मंदिर में मिलते हैं हमारे कुल देवता का मंदिर है वहीं पर इन दोनों का विवाह होगा ।

        दादी नीलांजना के पास बैठी उसे पतिव्रता स्त्री के नियम बताती है , हमेशा अपने पति की बात सुनना, उनसे बहस मत करना, उनकी बात मानना , उनके उठने से पहले उठना, उनके सोने के बाद ही सोना, उन्हें खिलाने से पहले खाना नही ।  और मेरी लाडो सबसे अंतिम बात मायके का मोह मत करना , वो जब भेजे तभी आना, बिना उनकी इजाजत के या जिद करके मत आना । 

    नीलांजना रोने लगती है वह कहती है पर आपकी याद आएगी तो मैं क्या करूंगी । 

    दादी भी रोने लगती है , फिर उसे समझाते हुए कहती है । लाडो राजा साहब से तुझे इतना प्यार मिलेगा की तू हम सबको भूल जाएगी ।

   नीलांजना आँसू पोछकर कहती है , सबको भूल जाऊंगी दादी पर आपको कभी नही भूलूंगी ।

   फिर दोनो दादी पोती  गले लग जाते है ।


........................ ................. .......................


    मंदिर में ऊंचे स्वर में मंत्रोचार हो रहा है , करीब 21 पंडित एक साथ मंगलाचार कर रहे थे ,  हाथ मे वर माला लिये राजा सूर्यमल और नीलांजना दोनो खड़े थे, 
     चन्द्रभागा ने बहुत कोशिश की, की नीलांजना का चेहरा दिख जाये पर वह लंबे से घुघट में थी ,।

    और फिर शुभ घड़ी में दोनो ने एक दूसरे के गले मे वरमाला डाल दी ।

   उन पर चारो और से पुष्पों की वर्षा होने लगी ।

नीलांजना की विदाई मंदिर से ही हो गयी, 

और  गांववालों और घरवालो  की भी । उन्हें महल ले जाया ही नही गया । हालांकि राजमहल की तरफ से उन्हें ढेरो उपहार मिले ।

 
       नीलांजना सुहाग सेज पर बैठी , राजा सूर्यमल का इंतजार कर रही है । तभी चन्द्रभागा और प्रभावती का प्रवेश होता है ।

      नीलांजना को घूंघट में देखकर चन्द्रभागा कहती है , अरे छोटी रानी हमसे क्या शर्माना  हम भी तो देखे तुम्हारा सुंदर  मुखड़ा जिस पे राजमाता फिदा हो गयी ।

      यह कहकर वह खुद ही घूंघट उठा देती है । नीलांजना को देखकर उसकी हँसी निकल जाती है पर बोलती कुछ नही । प्रभावती मामले को समझकर नीलांजना का चेहरा हाथो में लेकर कहती है कितनी सुंदर है  हमारी छोटी रानी

     फिर चन्द्रभागा की तरफ देखकर कहती है , छोटी इसकी आंखे तो देख कितनी गहरी है नीली नीली, बड़ी प्यारी है , राजा साहब तो इसी में डूब जायेंगे ।

    चंद्रभागा के चेहरे से उसकी खुशी झलक रही थी वह ना कुछ सुनना चाह रही थी ना ही कहना चाहती थी , इतने दिनों से वह जिस शंका को लेकर जी रही थी वह निर्मूल साबित हुई । वह तो खुशी से कमरे के बाहर निकल गयी  ,प्रभावती उसे आवाज ही देती रह गयी है ।

     .................................................................

    नीलांजना  सुहाग सेज पर बैठी ही  रही राजा सूर्यमल के आने के कोई आसार नही दिख रहा था । उसकी निगाहे रह रह कर दरवाजे पर ही लगी हुई थी , 

      अंदर जो डर था राजा साहब के सामने आने का उसने चिंता का रूप ले लिया था कि  राजा साहब अभी तक आये क्यो नही । 

     पर उसका इंतजार तो अंतहीन था ।


क्रमशः 
     

      

    

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