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भाग-1, समंदर की तलाश

26 फरवरी 2022

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सुनसान सड़क थी, सूखी झाड़ियां ही सड़क के साथ-साथ इक्का-दुक्का दिखती थी, इसके अलावा कोई पेड़ नजर में नही आता था। सड़क पर अधिकतर रेत ही था। हवा भी रेत को चारों तरफ उड़ा रही थी। माहौल सुनसान था। आस-पास जो कोई मकान था भी तो उजाड़ और वीरान। किसी-किसी मकान को देख कर तो पता चलता था कि इसे उजड़े हुए कईं दशक बीत चुके हैं। सूरज आसमान में सीधा सिर के ऊपर चमक रहा था। ये मौसम गर्मी का था, सूरज आग बरसा रहा था। लेकिन साल के इस समय कौनसा मौसम होना चाहिए इसका कोई अनुमान नही लग सकता था।
                 समय का अंदाजा नही था। समीर के हाथ पर बंधी घड़ी कल रात 8 बजे से बंद पड़ी थी। वो एक लंबी सड़क पर एक कार्ट को खींचता हुआ चला जा रहा था। इतने गर्म मौसम में भी समीर ने ओवरकोट और मोटी आर्मी पैंट पहन रखी थी, पैरों में मजबूत मोटे जूते और हाथों में मोटे दस्ताने थे। मुँह भी मास्क से ढंक रखा था और आंखों पर काला चश्मा। बालों का रंग रेत की वजह से भूरा-लाल हो गया था। इसकी वजह थी सूरज की ख़तरनाक रेडिएशन। जिसका धरती के वायुमण्डल के कमजोर होने की वजह से धरती पर आना अब आम सी बात थी। अब सीधी धूप में 3-4 घण्टे से ज़्यादा रहना खतरनाक था। पुरानी दुनिया (यानी वो दुनिया जिसमें हम रहते हैं) को खत्म हुए कितना वक्त हो चुका है इसका समीर को अंदाज भर ही था। समीर रुका, उसने कार्ट में से एक मश्क उठाई और उसमें से 2 घूंट पानी पिया। पानी जो इस खत्म होती दुनिया में असली खजाना था। अब लोग (वों लोग जो तबाही से किसी तरह बच गए थे) पानी को छुपा कर रखते थे। पानी पी कर समीर ने चश्मे हटाये और दूरबीन से अपनी मंजिल को देखने की कोशिश की, उसे कुछ आशा जगी। वो समुद्र तट की और बढ़ रहा था। उसे उम्मीद थी कि वहां उसे सूख चुके समंदर के आस-पास कुछ दिनों के लिए पानी मिल जाएगा। उसने समंदर तब से देखा ही नही था जब से उसने होश संभाला, क्योंकि उसके बचपन में ही तबाही आ चुकी थी और धरती के अधिकतर समंदर सूख चुके थे। इंटरनेट अब था नही, उसके पास बस कुछ तस्वीरें थी समंदर की। उसकी उस कार्ट में प्लास्टिक की बड़ी-बड़ी कुछ खाली बोतलें और दूसरा समान था।
                                                                थोड़ी सी दूर चलने पर उसने पाया कि सड़क के दोनों तरफ कुछ टूटी-फूटी कारें खड़ी थी, देखने से लगता था कि काफी पुराने वक़्त से यहाँ खड़ी हैं, शायद तबाही के शुरुआती समय से। लेकिन उनको देख कर चौकन्ना होना जरूरी था। क्योंकि इस दौर में सबसे बड़ा खतरा लूटेरे-हत्यारों का है। वों लोग दूसरों को लूट कर उनको मार देते हैं या सारा सामान जैसे खाना और पानी लूट कर मरने के लिए छोड़ देते हैं। समीर सावधानी से उन कारों के बीच से गुजर रहा था, उसने कार्ट में से एक लोहे की रोड निकाली और उसे हाथ में ले कर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा । आंख और कान खुले थे। तभी उसे कुछ हरकत होने की आवाज आई। उसे लगा ही था कि इन गाड़ियों के बीच जरूर कोई छुपा होगा। इसके कदम रुक गये। पीछे से एक आवाज़ आई, एक भारी आवाज़ "सामान से दूर हो जाओ और हथियार जमीन पर रख दो।" समीर मुड़ा उसने देखा कि एक अच्छा खासा तगड़ा आदमी उसकी तरफ रिवाल्वर लिए खड़ा था। उस आदमी ने अपनी बात दुहराई

"उस रोड को जमीन पर फेंक दो, अभी" उस आदमी ने कहा।

"देखो मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ नही है, मैं तो खुद..." समीर बोला।

"बकवास बन्द करो, और उस कार्ट को मेरी तरफ धकेलो, जल्दी, नही तो अगले ही पल तुम्हारा भेजा यहाँ गर्म सड़क पर फ्राई होरहा होगा, चलो जल्दी करो"

"ठीक है, ठीक है"। ऐसा कह कर समीर ने रॉड अपने पैरों के पास गिरा दी और उस कार्ट को एकदम से लात मारी और वो जा कर सीधी उस आदमी की टांगो पर लगी। उसका ध्यान हटा तो समीर ने तुरंत रॉड उठा कर उसके सर पर दे मारी। उसके हाथ से गन गिर गयी। पर उस आदमी ने अपनी कमर से दूसरी गन निकालकर समीर पर गोली चलाई, गोली उसके दाएं हाथ को छूती हुई निकल गयी। समीर ने तेजी से रॉड से उसके बन्दूक वाले हाथ पर हमला किया और गुस्से में उसके सिर पर फिर से मारा, इस बार उसके जमीन पर गिरते ही समीर ने उसके सिर पर लगातार एक के बाद एक 5 बार रॉड से पूरी ताकत से हमला किया। वो मर चुका था और उसके सिर के चिथड़े और खून सड़क पर फैला पड़ा था। समीर थक कर पास की कार के सहारे छांव में बैठ गया। उसकी बाजू से खून बह रहा था। उसने वो खून से सनी रॉड उस आदमी के कपड़ों पर रगड़ कर साफ की और उसे वापिस कार्ट में डाल दिया। उस आदमी के कपड़े फाड़ कर अपने जख्म को बांध लिया। उसकी दोनों बन्दुकें समीर ने जब्त कर ली। उसके बाद उसकी लाश की तलाशी ली, उसके हाथ में एक S अक्षर की अंगूठी थी, उसे निकाल कर समीर ने अपनी उंगली में फंसा लिया। उसकी कलाई पर बंधी घड़ी पर समीर की नजर पड़ी, वो काम कर रही थी और दिन के 1:15 बजा रही थी। उसने उसे उतार लिया और कोट की जेब में रख लिया। उसके बाद समीर उठा और आस-पास खोदने के लिए कुछ ढूंढ़ने लगा। लोहे का एक बड़ा टुकड़ा उसे मिला जो शायद कार का कोई पुर्जा था। उसकी मदद से समीर ने सड़क के किनारे से थोड़ी दूर एक कब्रनुमा गड्ढा खोदा। जमीन रेतली और कमजोर थी इस लिए थोड़ी देर में ही काम हो गया। उसके बाद समीर उस आदमी की लाश को टांगों से पकड़ कर खींचता हुआ वहाँ तक लाया और उस गड्ढे में उसे डाल दिए। फिर एक बार उस लाश को देखा और बोला "मैं तुम्हे मारना तो नही चाहता था दोस्त, पर,(ऊपर सिर व आंखे बंद करके) तुम तो शायद मरने ही आये थे, (फिर उसकी तरफ देखता हुआ बोला) तुम्हे दफन करना है या जलाना है, पता नही पर ये ही है जो फिलहाल मैं कर सकता हूँ"। समीर ने लम्बी सांस ली। उस गड्ढे को मिट्टी से भर दिया और लोहे का वो टुकड़ा गहराई तक वहीं गाड़ कर उस पर लिख दिया "Mr. S."।
                    इतना काम करके समीर ने दो घूंट पानी के पिये और थोड़ा सा आराम करके अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा। लगभग 2 घण्टे चलने के बाद उसे एक उजाड़ सी 2 मंजिला इमारत दिखी। उसने रुक कर अपने ओवरकोट की ऊपरी जेब से एक फोल्ड किया हुआ नक्शा निकाला। अपना चश्मा उतार कर एक तरफ रखा और उस नक्शे को खोल कर उसका मुआयना करने लगा। एक ख़ास बिंदु पर जा कर उसकी आंखें फैल गयी। उसने नजर उठा कर उस इमारत को देखा। फिर झटपट से नक्शा बन्द करके अपनी जेब में डाला और कार्ट में से कुछ बोतलें हाथों में ले कर दौड़ता हुआ उस इमारत के पीछे की तरफ बढ़ने लगा। असल में अतीत में ये जगह एक बीच(समुद्री तट) था। वो नक्शे पर इसे ही ढूंढ रहा था।
                                                  वो दौड़ता हुआ इमारत के पीछे गया। वहाँ बहुत सारा मलबा बिखरा पड़ा हुआ था। आखिरकार वो उस जगह पहुंचा, समंदर तट पर। उसके सामने लहलहाता अथाह समंदर था, समंदर, पर वैसा नही जैसा वो सोच रहा था बल्कि समंदर जो कि..........
                                                    अगला भाग जल्दी ही

  (अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया जरूर दें, इसका बहुत महत्व है मेरे लिए और आगे भी लिखने की प्रेरणा मिलती है)
            

     

 

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