बात आज से कुछ पन्द्रह सोलह साल पहले की हैं..। मैं अपने किसी रिश्तेदार से मिलने शहर से दूर एक गाँव में जा रहीं थी..। एक सरकारी बस से..।
लाल रंग की बहुत बड़ी होती है ये बस उसमें एक तरफ़ तीन सीट होती हैं और दूसरी ओर दो सीट..। बस में चढ़ी तो देखा बिल्कुल पीछे की पूरी सीट जो एक छोर से दूसरे छोर तक होतीं हैं... वो पूरी खाली थी..। क्योंकि उस सीट पर अनुमन कोई बैठने की भी नहीं करता था.. क्योंकि कच्ची सड़क होने की वजह से वहाँ बैठने वालों को बहुत धक्के लगते थे..। मैनें यहाँ वहाँ नजरें घुमाई तो देखा एक डबल सीट वाली पर एक सीट खाली थी..। मैं तुरंत उस सीट पर बैठ गई। खिड़की की तरफ़ एक उम्र दराज़ अंकल बैठे थे..। मेरे सामने जो तीन सीट थी वहाँ एक पति पत्नी अपनी तेरह चौदह साल की बेटी के साथ बैठे थे..। उनकी आपस की बातों से पता चला की वो पति पत्नी हैं..। औरत पूरी राजस्थानी परिवेश में थी उन्होंने घूंघट किया हुआ था तो मैं उनकी शक्ल नहीं देख सकीं..। लेकिन मुझे जो बात उनकी बेटी को देखकर खटकी... वो अपने पिता के कंधे पर सिर टिका कर बैठी थी पर उसकी पलकें बिल्कुल भी झपक नहीं रहीं थी.. वो एक टक बस बस की छत की ओर देखें जा रही थी..। कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और मैं पुछ बैठीं.. काका.. क्या हुआ हैं... गुड़िया बिमार हैं क्या..?
वो ज्यादा कुछ नहीं बोले बस हम्म्म्म में जवाब दिया..।
मैनें फिर से पुछा:- क्या हुआ हैं इसको..?
इस बार उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया..।
मैं ना जाने क्यूँ उस लड़की से अपना ध्यान हटा ही नहीं पा रहीं थीं..। मैं फिर से पुछने ही वाली थी की मेरी बगल में बैठे अंकल जी ने मुझे रोक दिया और कहा:- मत पुछो.. वो लोग पहले ही परेशान हैं.. तुमको उनकी बच्ची की हालत दिख नहीं रहीं..।
मैने उन अंकल से कहा:- अंकल जी मैं तो बस इसलिए पुछ रहीं हूँ क्योंकि सरकारी अस्पताल में मेरे एक मित्र हैं जो डाक्टर हैं... अगर वो लोग वहाँ जाकर दिखाएंगे तो सही रहेगा..।
वो अंकल मेरी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराए और बोले:- डाक्टर... क्या बेटी.... इस बिमारी का इलाज किसी डाक्टर के पास नहीं हैं...।
मैने उत्सुकता वश पुछा.:- क्या आप उनके साथ ही हैं.... आप जानते हैं उनको क्या बिमारी हैं..?
वो अंकल बोले:- नहीं मैं उनके साथ नहीं हूँ.... पर बिमारी जानता हूँ..। उस लड़की पर किसी का साया हैं.. और उसका इलाज कोई डाक्टर नहीं कर सकता..।
मैं उन अंकल की बातों से सहमत नहीं थी:- साया.... ये सब बकवास हैं अंकल जी.... ऐसा कुछ नहीं होता..। ये सब अंधविश्वास हैं... ऐसी कोई बिमारी नहीं हैं जिसका इलाज ना हो...। मैं इन सब बातों को बिल्कुल नहीं मानती..।
अंकल:- कुछ बातें हमारे मानने से नहीं... हम पर बितने से ही समझ आती हैं.. मैं भी इन चीजों से गुजर चुका हूँ...। रहीं बात तुम्हारी तो तुम्हें भी बहुत जल्द दिख जाएगा..।
मैने फिर पुछा:- दिख जाएगा.... क्या मतलब हैं आपका अंकल...।
अंकल:- ये लोग कहां जा रहें हैं.... इस बच्ची को लेकर तुम्हें पता हैं..।
मैने नहीं में सिर हिलाया..।
तब वो अंकल बोले ये लोग मेहन्दीपुर के बालाजी जा रहें हैं...। जो अब कुछ ही किलोमीटर दूर हैं... अब इस लड़की को तुम ध्यान से देखना बस घबराना मत..।
मैने अंकल की बातें सुनी और उस लड़की पर ध्यान केंद्रित किया...। कुछ चार पांच मिनट बाद ही मैने देखा... वो लड़की अब थोड़ा हिल ठुल रहीं थी..। तभी उसकी माँ ने कहा:; सुनिए ये लिजीए रस्सी बांध लिजीए फटाफट....अब ये विरोध करेगी..। उसके पापा ने झट से रस्सी ली और उसके हाथ पीछे की ओर करके बहुत मजबूती से बांध दिए..। मैने देखा जैसे जैसे बस आगे बढ़ रही थी वो अजीब हरकते करने लगीं थी...। कभी अपना सिर पटकती.. कभी अपनी गर्दन घुमाती..। बहुत डरावना द्र्श्य था...। उसके पेरेन्ट्स उसको शांत रखने की बरसक कोशिश कर रहे थे पर सब नाकाम... वो अब उनके हाथ ही नहीं आ रहीं थी..। एकाएक बस रुकी और कंडेक्टर चिल्लाया:- मेहन्दीपुर के बालाजी..।
उसके पेरेन्ट्स लड़की को पकड़ कर बस से उतारने लगे पर वो उनसे संभल नही पा रहीं थी... तभी कंडेक्टर भी उनकी मदद के लिए आया... वो दुबली पतली लड़की उन तीन लोगों से भी नहीं संभल रहीं थी...। जैसे तैसे कुछ कदम चले ही थे की अचानक वो जोर से चिल्लाई:- छोड़ दो मुझे.... नहीं तो मैं तुम सबको मार डालुंगा.... नहीं जाना मुझे वहाँ.... छोड़ दो... छोड़ दो...।
वो द्रश्य बेहद डरावना था क्योंकि वो लड़की एक पुरुष की आवाज में चिल्ला रहीं थी...।
हिम्मत करके कुछ और यात्री भी उनकी मदद करने आए.... करीब सात आठ लोगों की मदद से उसे बमुश्किल बस से उतारा गया...। बस से उतरते ही वो सब लोग उसे एक पेड़ से बांध रहे होते हैं..। फिर कुछ मिनटों बाद एक जीप में कुछ लोग आतें हैं और उस लड़की को कुछ पिलाते हैं... जिससे वो लड़की शांत हो जाती है। उसके परिवार वाले लड़की के साथ जीप से चले जाते हैं.. बाकी यात्री फिर से बस में आते हैं और बस अपने गंतव्य की और चल पड़तीं हैं..।
ये सब खत्म होने के बाद अंकल बोले:- अब तुम क्या कहोगी बेटा..।
मैं कुछ बोलने की हालत में ही नहीं थी.... ये सब पहली बार मेरी आंखों के सामने हुआ था...। सब कुछ मेरी समझ के बाहर था...। मन में हजारों सवाल चल रहें थे... क्या होगा उस लड़की के साथ... क्या सच में ऐसा कुछ होता हैं... आखिर उस मन्दिर में ऐसा क्या हैं जो वहाँ ये सब ठीक हो जाता हैं... ना जाने कितने सवाल थे.... जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं था....।