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एक सफर उत्तराखंड की ओर

किशन पटवा

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आज मैं आप सभी को जो बताने जा रहा हूं वो मेरा अभी तक का सबसे ज्यादा सुहाना या सबसे ज्यादा खुशनुमा अनुभव मैसे एक है। मैं आपको ये बात पहले ही बता देना  चाहता हूं कि ये सफर काफी बड़ा और दिलचस्‍प होने वाला है।  इस सफर में मैंने अपने आप को अपनी परंपरा अपने विचार को काफी ज्यादा करीब से जाना है। बाकी लोगों का मुझे पता नहीं पर मैं उत्तराखंड सिर्फ घूमने के नजरिए से गया हुआ था। बाकी सभी लोगो की तरह मैंने भी एक वीडियो मैं उत्तराखंड के बारे में देखा था। मुझे भी एक बार यहां जाना है। और किसी भी तरह एक बार लेकिन जाउंगा जरूर ये बात मैंने अपने मन में ठान ली थी। कई बार मौके मिले परंतु जाने का संयोग नहीं बन पाया कभी पैसे या कभी समय के अभाव से जाना न हो सका। पर कहते हैं न जबतक बुलावा उनका नहीं आता तब - तक इंसान कितना भी हात-पैर मार ले या कितने भी प्रयास क्यों न कर ले वो नहीं जा पता है। शायद मेरे उत्तराखंड जाने के पीछे उन ही की मंशा थी की मैं वहा बिना किसी योजना के पहुंच गया। अच्छा तो अब सफर के वर्तमान में आ जाते है। एक दिन मुझे अचानक ही मेरे एक दोस्त का कॉल आ जाता है उसने मुझसे कॉल पर कहा की हमे अक्टूबर की ६ तारीख को उत्तराखंड के सफर पर जाना है। और मेरा मन तो पहले से वहां जाने का था। मैने उसकी सारी बाते सुनी और जैसे ही उसने एक एसी जगह का नाम लिया मैने बिना कुछ सोचे समझे उसकी सारी बातों को अनसुना करते हुए सीधा जाने के लिए हां कह दिया और उस पवित्र जगह का नाम था। ( केदारनाथ धाम ) पता नही क्यों लेकिन मानो बिना कुछ सोचे समझे बगैर वो आवाज मेरे अंदर से अपने आप ही आ गई हो जैसे उस जगह का नाम सुनकर मेरे पूरे शरीर में एक अलग सी कंपन मच गई हो। और मैं तबसे सिर्फ उस जगह के बारे में सोच ही रहा था। फिर मेरे दोस्त ने मुझे बोला की भाई तू सुन भी रहा है या नही कबसे तू सिर्फ चुप ही है क्या सोच रहा था तबसे तू पक्का आ रहा है ना मैने फिर से हामी भरते हुए कहा की भाई किस मुंह से ना बताया पर पता नही क्यों इस सफर के बारे में जब मैंने उनसे बात की कि मुझे जाना है इस सफर पर उन्होंने मुझे बिना ना बोलते हुए पहली बार जाने की अनुमति दे दी। में बहुत खुश था की मम्मी और पापा ने मुझे जाने की हरी झंडी दे दी है। और सफर पर जाने मैं सिर्फ कुछ ही दिन बाकी थे और जैसे–जैसे सफर का दिन करीब आ रहा था मानो मेरी उत्सुकता और बढ़ रही थी 

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