मेरा भारत, इसकी तो इतनी सारी बातें अच्छी है कि ग्रंथ लिख दे तो भी कम पड़े।
जो मुझे सबसे निराली बात लगती है वह अध्यात्म है।
सारे विश्व में अध्यात्म का कोतुहल है।
कोई ढूंढ रहा है अध्यात्म ,तो कोई मतलब खोज रहा है।
भारत में तो अध्यात्म रचा बसा है। कैसे ?
जय श्री राम करते हैं और देखते हैं रामजी भारत को क्या सिखा गए।
राम जी बहुत समर्थ, फिर भी वे दुश्मन को अवसर देते हैं। और उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय हो तब हथियार उठाते हैं।
महाभारत में भी श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ ऐसा ही अन्याय पहले होने दिया, उनकी सहनशीलता देखिए।
कितना वह क्षमा कर सकते थे, क्या आप और मैं सोच सकते हैं?
द्रोपती चीर हरण' क्या वह समर्थ पांच पांडव ऐसा होने दे सकते थे?
इतना बड़ा उदाहरण क्यों लेकर गए हैं ?
क्योंकि कलयुग में मनुष्य के अंदर सहनशीलता नहीं।
मर्यादा तोड़ने में क्षण नहीं लगाता।
आप सोचिए सामने वाले ने आपको एक गाली क्या दे दी, आप उसकी जान लेने पर उतर जाते हैं।
सड़क किनारे किसी से गाड़ी बीड़ा दी, कोर्ट कचहरी चले जाते हैं।
मनुष्य हैं ,उनकी भावनाएं ऐसी हैं उनमें तामसिक गुण है।
मगर इन सभी से ऊपर उठने के लिए पौराणिक उदाहरण है।
भारत में भगवान ने अपने अवतार लेकर लीलाएं दिखाई।
हमें सिखा कर गए आध्यात्म।
अपने हर रोज के कार्यों में उनको ला कर अपना जीवन बहुत सुंदर बना सकते हैं।
भारत में अध्यात्म हर स्थान पर है। हर एक बात में भरा है। बस देर होती है हमारे समझने की।
देर सवेर अपनी समझ के अनुसार हर व्यक्ति को अध्यात्म के अर्थ समझ में जरूर आते हैं।
जब कोई महिला सुबह सवेरे उठकर हाथ से रई से दूध को मथती है, घंटों लगाती है, जब मक्खन निकलता है।
ठीक वैसे ही जब हम पूरा जीवन अध्यात्म को अपने हर कार्य में लागू करते हैं तो ही उसका अर्थ समझने लायक बनते है।
विज्ञान हो या विदेश हो ,किसी भी संप्रदाय के लोग हो
जब तक उनका मनचाहा कार्य होता रहता है, वह ठीक है। फिर जीवन में एक ऐसा समय भी आता है, जब वह जैसा चाहते हैं, नहीं होता।
वह परेशान होते हैं उनके पास कोई उत्तर नहीं होता।
भारत यहां के हर एक व्यक्ति के पास इसका उत्तर होता है। भारतीय बोलता है मन का हो तो अच्छा और ना हो तो ओर अच्छा। वह अभ्यास, वह निरंतरता,सतत प्रयास करता है।
ऐसे ही वाक्य बोलकर मनुष्य अपने मन को समझा लेता है। मतलब कहीं ना कहीं एक अंत है। वह जानता है यह सत्ता किसी और की है वह मात्र कठपुतली है।
भारतीय को यह सब सीखना नहीं पड़ता, यह तो उसके खून में है ,उसके संस्कारों में है।
हर कोई एक दिन थक कर वापस अध्यात्म की छाया में लौट आते हैं।
युद्ध जब करना ही श्रीकृष्ण को था, तो अर्जुन माध्यम क्यों?
प्रयास तो हमें खुद ही करना पड़ेगा परिश्रम तो खुद ही करना पड़ेगा।
निरंतर अभ्यास बार-बार प्रयास वर्तमान में जियो और जब आप ऐसा करते हैं तो सच में अपने जीवन को सफल बनाते हैं।
सभी प्रश्नों के उत्तर अध्यात्म में मिल जाते हैं।
वंदना शर्मा
लेख