भूख
कोई पकवान खाये या रोटी नमक,
पेट भरता नहीं भूख जाती नहीं।
पेट क्या सोच कर के बनाया खुदा ,
ये जो खाली रहे नींद आती नहीं।
भूख के ही लिए पाप करते सभी।
भूख के ही लिए खुद से लड़ते सभी।
पेट को पीठ क्यों ना बनाया खुदा,
पीठ दो भी हो तो भी सताती नहीं।
भूखा रोटी की खातिर सब कुछ सहे।
इंसा होकर पशु से भी बदतर रहे।
भूख होती नहीं इस जहाँ में अगर ,
ज़िंदगी इस तरह फिर डराती नहीं।
रोटी छोटी सही पर यही ज़िन्दगी।
सबका ईमान भगवान औ बंदगी।
भूख सहना अगर होता मुमकिन यहाँ ,
आबरू बेच वो धन कमाती नहीं ।
…….. सतीश मापतपुरी