ना अपेक्षा करो ना उपेक्षा करो ।
अपने’ कर्मों की’ केवल समीक्षा करो ।
अब करो प्रण कभी पाप हमसे न हो ,
हो चुका है जो’ उसकी परिवीक्षा करो ।
दीन मजबूर पर ना सितम हो कहीँ ,
सबको’समझाओ’सबको ही’ दीक्षा करो ।
कोई’ चोरी करे तो सजा तुम न दो ,
आखिर मजबूरी’ क्या थी अन्वीक्षा करो ।
हैं हितैषी जो’ इसकी मुनादी करे ,
वक़्त आने पर उनकी परीक्षा करो ।
….. सतीश मापतपुरी