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चारुलता सी

9 नवम्बर 2021

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चारुलता सी  पुष्प सुसज्जित, चंद्रमुखी  तन ज्योत्स्ना।
खंजन- दृग औ मृग- चंचलता, मानों कवि की कल्पना।


उन्नत भाल -चाल गजगामिनी, विधि की सुन्दर रचना है।
मंद समीर अधीर  छुवन को,  सच  या  सुंदर सपना है।
निष्कलंक -निष्पाप ह्रदय में,  पिया-मिलन की कामना।

चारुलता सी  पुष्प  सुसज्जित, चंद्रमुखी तन ज्योत्स्ना।

तना-ओट से प्रिय को निहारा, नयन उठे और झुक भी गए।
प्रिय- प्रणय की आस ह्रदय में, कदम उठे और रुक भी गए।
थरथर  कांपे  होंठ  हुआ  जब,   प्रिय  से  उसका  सामना।

चारुलता  सी  पुष्प  सुसज्जित,   चंद्रमुखी  तन  ज्योत्स्ना।

नयन-कोर से  रह-रह  बहके,  धार  कुंवारे  काजल की।
कंधे से रह-रह कर कटि तक  सरके अल्हड़ आँचल भी।
प्रिय ने लिया आलिंगन में तब, पूरी  हुई चिर  साधना।

चारुलता सी पुष्प सुसज्जित, चंद्रमुखी तन ज्योत्स्ना।

…….. सतीश मापतपुरी

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रचनाएँ
थमते कदम आ जाइए
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इसमें गीत ग़ज़ल और गीतिका का संग्रह है।
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चारुलता सी

9 नवम्बर 2021
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<p>चारुलता सी पुष्प सुसज्जित, चंद्रमुखी तन ज्योत्स्ना।<br> खंजन- दृग औ मृग- चंचलता, मानो

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