कैसी लगी है लोगों को आजकल भूख ,
नहीं दिखाई देता अपने अपनों का मुख ,
मुँह पर करते तारीफें पीठ पिछे देते चोट ,
पहने सभी ने यहाँ शराफतों के हँसी कोट ।।
खुर्ची के लिए खिंचते अपनों को ही नीचे ,
कहाँ प्यार से कोई रिश्ता अब सदा सिंचे ,
मदहोशी में करते नीतदिन कारनामे बडे ,
औरों की ना सूनकर सदा जिद पर है अडे ।।
नहीं इनके लिए बना सच्चाई का कोई रास्ता ,
नहीं अच्छाई से दूर दूर तक अब इनका वास्ता ,
जहाँ रहते उसी थाली करते रहते है छेद ,
गैरों के आगे खोलते रहते ये अंदर के भेद ।।
सभी है यहाँ बिभीषण ,नहीं बचा कहीं राम ,
औरों को करके बदनाम, खुद का करे नाम ,
जनता गरिबी में जीती, और भूखी नंगी होती ,
ना उनके बदन पर बदन ढकने जितनी लंगोटी ।।
हाल है अपने अपनों का कैसा हुँवा यहाँ बेहाल ,
मर्तक के लिए महाभोज जिंदा है भूख से बेहाल ,
शादी बिहा में बडी दावतों से महफिल है सजती ,
आलिशान शानोशौकत दरबार में इनकी नाचती ।।
भूख को भी अपना हाल देखकर आता होगा रोना ,
उसे निवारण करनेवाला कहाँ बचा अब कोई कोना ,
बिना दाने के निवाले के होता कई दिनों तक सोना ,
गूजर गया जो रामराज वापस फिर से अब ना होना ।।