आजकल थोडा हारी हारी हुँ मैं ,
क्या इसलिए की इक नारी हुँ मैं ,
पलकों ने तो सजाये सपने हजार ,
जिम्मेदारी कर जाती मुझे बेेजार ।।
हाथ बढाऊ तो मुठ्ठी में आये सारे ,
हाथ फिर भी थामे है जो अपने ही प्यारे ,
सोते जागते हर घडी देते मुझे आवाज ,
चिल्लाना चाहती जोर से , फिर भी मैं बेआवाज ।।
इक बेटी ,पत्नी , बहु ,माँ में गूजराती जिंदगी ,
सच्चाई संग ख्वाबों की ना होगी मौजुदगी ,
इक ही तो जिंदगी हैं उडना चाहती होके आझाद ,
क्या इतनी सी चाहत से मैं हो जाती बज्जाद ।।
क्यु नहीं हो सकते मेरे भी अलग अलग रास्ते ,
क्यु हर एक बंदिशे रिश्तों की मेरे ही वास्ते ,
कहीं से तो निकलकर कहीं तो पहुँचना ही होगा ,
रिश्तों को थोडा बाजू करके मैं को अब पाना होगा ।।
माना मेरा सफर है मुश्किलों से भरा ,
मन के अंदर फिर भी हौसला है पुरा ,
देंगे मुझे ताने समाज के सफेदपोश ठेकेदार ,
गिरकर उठ खडे़ होंगे हम भी बारंबार ।।
अब थान लिया है रास्ता ,मंजिल भी अपनी ,
चले कदम इक साथ वो परछाई भी अपनी ,
पाकर अब बुलंद मेरे ख्वाबों का आकाश ,
चारों और फैलाना है मेरा तेज - प्रकाश ।।
मत समझो , तुम नारी हो सताई छाया ,
तुम खुद में हो उस ऊपरवाले की माया ,
तुम्हारे बिन ना होता किसीका दुनिया में आना ,
तुम्हारे बिना ना होता किसीका गोदी में झूलना ।।
मैं तो निकल चली हुँ अब खुद की तलाश में ,
बहाने ना रुकने के कोई अब मेरे पास में ,
रामायण से निकली हुँ पहुँचना लेकिन दूर ,
सदियाँ ना भूल पाये मेरे किर्ती का नूर ।।
रुक, पुरुष ,ले मुझसे कुछ ख्वाब उधार,
चले चला चल संग मेरे बनने मेरा आधार ,
दूर हो जाएगा तुझसे जुदा होने का हर एक डर ,
मिलके बढाते है ना कदम बस अब उम्र भर ।।
करते है ना सपनों में तेरी -मेरी हिस्सेदारी ,
गम - खुशी की होगी एकसाथ बराबरी ,
ख्वाब मेरे आसमानी -जमीं मेरी अब भी तु ,
महले है ऊँचे मेरे - बुनियाद मेरी अब भी तु ।।
चलोगे क्या हाथ ठाम मेरे सपनों की और ,
करोंगे क्या कभी मेरी उलझन पर भी गौर ,
क्या होगा तुमसे मेरे मन को पढना ,
क्या होगा तुमसे खुद को खोकर मेरे संग चलना ।।
क्या होगा तुमसे फिर मेरे जैसा बनना ,
क्या अब होगा तुमसे बिना पर उडना ,
क्या हासिल हो पायेगा मुझे मेरा जहाँ ,
क्या मिला पाएगा योगदान कुछ अपना ।।