मीकू ओ मीकू ।जरा मेरी बेंत तो लाना।देख तेरी बूढ़ी दादी को दिखाई"मीकू नही दे रहा मेरा चश्मा भी ला ढूंढ कर।" सरला ने अपने पांच साल के पोते को आवाज दी।तभी मीकू दौड़ कर दादी का चश्मा ले आया।और चश्मा लाकर बोला,"आप यही बैथो ।मै अबी बेंत लाता हूं।"अपनी तोतली जुबान से जैसे मीकू ने सरला के कानों मे रस घोल दिया।वह भाग कर बेंत भी ले आया।
मीकू सरला देवी का एक मात्र सहारा था।वह जब भी किस चीज के लिए उसे आवाज देती वो दौड़ कर दादी के पास आता और उनका कहा हुआ हर काम करता।मीकू अकसर देखता दादी एक पोटली सी हाथ मे बांधे रहती थी।वह पूछता ,"दादी इसमे का है?"तो उसकी दादी कहती," भगवान का नाम लेने वाली माला ।देख लला इसे हाथ ना लगाना वरना ये टूट जाएंगी और सारे मोती बिखर जाएंगे।"
मीकू "अच्छा "कह कर उसे दूर से निहारता रहता ।दो साल पहले मीकू के माता पिता एक कार एक्सीडेंट मे मारे गये थे ।तब मीकू की दादी वृद्धाश्रम मे रहती थी। अचानक से खबर मिली कि उसके बेटे का हाईवे पर बहुत भारी एक्सीडेंट हो गया है बेटा बहू उसी जगह खत्म हो गये।मीकू उस दुर्घटना से इसलिए बच गया क्योंकि वह एक दोस्त की बर्थ डे पार्टी मे गया था। बेचारी सरला देवी ने इन्हीं बूढ़ी आंखों से जवान बेटे बहू को जाते देखा ।मीकू जब तीन साल का था उसे ये तो पता थाकि मम्मी पापा को चोट लगी है पर ये नही पता था कि वो अब कभी नही आयेंगे।अब भी वो कभी कभार दादी से पूछ ही लेता है ,"दादी । मम्मी पापा की चोट ठीक हुई या नही।" बेचारी सरला देवी के पास उस नन्हे के सवालों का कोई जवाब नही होता था।वैसे तो सरला देवी के तीन बेटे थे ।पर जब मां को रखने की बारी आयी तो दोनों बड़े बेटों ने पल्ला झाड़ लिया कि हमारे बच्चे बड़े हो रहे है मां को एक अलग से कमरा चाहिए । कहां से दे। बड़े शहर मे रहते थे दो कमरों के फ्लैट में।चाहते हुए भी नही रख पाते थे।सबसे छोटा बेटा ही छोटे कस्बे मे रहता था ।उसके पास एक कमरे का मकान था ।जिसमे कभी कभी सरला देवी आश्रम से आकर दस पांच दिन रुक जाती थी।वो सुख भी भगवान से देखा नही गया और वो सहारा भी भगवान ने छीन लिया।
एक दिन सरला देवी सो रही थी । नन्हे मीकू को ना जाने क्या सूझी ।उसने दादी की राम नाम वाली पोटली उठाई और उसे टटोलने लगा ।अंदर हाथ दिया तो मीकू के हाथ कुछ दानेदार चीज लगी ।उसने उसे बाहर निकाला तो एक चमचमाती मोतियों की माला थी ।उसने सोचा ,"अच्छा दादी इसी से राम नाम लेती थी ।वो बेचारे को क्या पता वो भी दादी की तरह बैठ कर राम नाम लेने की नकल करने लगा। अचानक से जोर से हाथ लगने पर वह मोतियों की माला टूट कर बिखर गयी ।मीकू की चीख निकल गयी।उसे लगा दादी मुझे मारेगी। उन्होंने कितना मना किया था मुझे हाथ ना लगाना पर मैंने उनकी माला तोड़ दी ।सारे मोती बिखर गये। मीकू की चीख जैसे ही सरला देवी ने सुनी वो हड़बड़ा कर उठी तो देखा फर्श पर माला टूटी पड़ी है और सारे मोती बिखरे पड़े है।पर मीकू का कही भी पता नही चला कहां है ।वो बदहवास सी दौड़ी दौड़ी पडोस मे दो चार घरों मे गयी जिनके यहां मीकू खेलता था वहां भी नही मिला ।सरला देवी का घबराहट के मारे बुरा हाल था उसने सारी जगह देख लिया मीकू कहीं नही मिला । पुलिस मे रिपोर्ट कराने ही जा रही थी कि सामने से एक आदमी मीकू को बेहोशी की हालत मे लेकर आता हुआ दिखाई दिया।सरला देवी ने दौड़कर मीकू को गोद मे उठा लिया।उस व्यक्ति ने बताया ,"ये बेहोशी की हालत मे मुझे एक पार्क मे मिला यह कुछ बडबडा रहा था ,"मैने दादी की माला तोड़ दी ।सारे मोती बिखर गये । फिर जब मैने इससे मकान नं पूछा तो इसने बेहोशी मे बता दिया।जब ही मै इसे छोड़ने आया हूं।"वह आदमी सरला देवी के हाथों मे मीकू को सौंप कर चला गया।
सरला देवी सारी रात मीकू को कलेजे के लगा कर बैठी रही और सोचती रही "हे भगवान तूने मेरे सारे मोती तो बिखेर ही दिये थे एक ये मोती हाथ लगा था ।वो भी आज मुझ से बिछुड जाता तो मै तुम को कभी माफ ना करती।
सुबह जब मीकू की आंख खुली तो अपने सिरहाने पर वही मोतियों की माला को जुड़ा हुआ देखकर वह दौड़ कर दादी के पास रसोईघर में गया और बोला,"देको दादी ।जै जुड़ गयी।"सरला देवी ने पोते को गोद मे उठाकर पुचकारते हुए कहा ,"ऐसी सौ माला कुर्बान मेरे लला पर ।आगे से घर से भागे गा नही ना।"यह कहकर सरला देवी ने मीकू के पसंद का हलवा उसके मुंह मे दे दिया । दोनों दादी पोते की आंखों मे खुशी के आंसू थे।