मानव जाति मे एक गुण होता है वो दूसरों के दुःख को देख कर दुखी नही होते जितना दूसरों के सुख को देखकर होते है।
ललिता ताई का यही हाल था । ललिता ताई एक ऐसी महिला थी मुहल्ले मे जिसके घर मे लड़ाई झगड़ा होता था तो ललिता ताई का कही न कही उसमे हाथ होता था।उनको रोटी हजम नही होती थी जब तक दिन मे दो चार घरों से बरतन टूटने की आवाज नही आती थी।उनका क्या कोई आगे ना पीछे था कोई उनका ।सुना था बहुत पहले एक बेटा था उनका बड़े जतन से शादी की थी उसकी ।पूरे मुहल्ले को ऐसी बढ़िया दावत दी थी कि लोग अभी भी उंगलियां चाटते है उनके बेटे की शादी के पकवानों की बात कर के।शादी के बाद पता नही क्या बात हुई उनकी अपनी बहू के साथ छः महीने में ही बहू घर छोड़ कर चली गयी।लोग पूछते कि आप की बहू क्यों चली गयी तो ललिता ताई का यही जवाब होता,"क्या करूं टिकी ही नही घर मे हर रोज का सिनेमा ,चाट पकौड़ी घर के काम को हाथ नही लगाती थी ।सारा दिन मै पिसती रहती थी घरके कामों मे ।एक दिन बेटे ने कह दिया कि मां का हाथ बंटा दिया करो घर के कामों मे तो बस फिर क्या बिफर पड़ी और अटैची उठा कर मायके चली गयी ।अब मै तो इन दोनों के बीच मे पड़ती नही।"
जब की मुहल्ले में सब जानते थे ललिता ताई कितनी कामचोर है ।किसी के घर से कोई बहाना मार कर रोटी ले आती थी तो किसी के यहां से सब्जी बस यू ही गुजारा करती थी । घर में दस पंद्रह दिन ना झाड़ू करती न पोचा।और कह रही थी कि बहू के आगे सारा काम करती थी। लोगों ने देखा था उनकी बहू को बेचारी शादी से अगले ही दिन घरके कामों मे लग गयी थी ।जब औरते मुंह दिखाई के लिए आयी तो ललिता ताई उसे किचेन से बरतन धोते हुए उठा कर लाई थी। औरतों के आगे झेंपते हुए कहा,"हेहेहे क्या करूं मानती ही नही है ।कहती है मम्मी जी आप बैठो।"
सुना है उसकी बहू ने तलाक की अर्जी दे दी थी तो ललिता ताई के बेटे ने जहर खा लिया था।तब से वो अकेली ही रहती है और मुहल्ले मे हर आने वाली नयी बहू उनका शिकार होती थी।
सुमन भी ब्याह करके अपने ससुराल आयी थी ।दो ननदें थी जो कंवारी थी और पढ़ रही थी। पतिदेव बहुत प्यार करते थे और सास भी उसे मां की तरह प्यार करती थी ।माना सुमन ऊंचे घराने से थी पर उसके पिता ने लडके की सुशीलता पर अपनी बेटी की शादी की थी। बड़े घर से थी तो निःसंदेह दहेज मे भी बहुत कुछ लायी थी जैसे कृष्ण ने सुदामा का घर भर दिया था वैसे ही सुमन के पिता ने सुमन की ससुराल मे एक एक चीज दी थी ।
मुहल्ले में ऐसी शादी हो और ललिता ताई को जलन ना हो ये कैसे हो सकता था। ललिता ताई को दो दिन से मरोड़ उठ रही थी कि किसी तरह नयी बहू मुझे अकेले में मिले और मै उसे भड़काऊ। लेकिन ललिता ताई का इंतजार लम्बा होता जा रहा था और बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
एक दिन ऊसे मौका मिल ही गया।सुमन की दोनो ननदें हास्टल चली गयी पढ़ने और उसके पति आफिस चले जाते थे।बस घर में उसकी सास होती थी ।आज वो भी किसी रिश्तेदार के यहां चली गयी थी । सुमन घर मे अकेली थी ।आज तो ललिता ताई को अच्छा मौका मिल गया था।अपनी लाठी टेकती हुए वह घर मे आयीऔर बोली,"कोई है के घर मे । बहूरिया कहां गये सब ।"
जब की उसे पता था घर मे बहू के अलावा कोई नही है ।सुमन ने भी आगे बढकर पैर छू दिए और ये सोचकर कि सास की कोई जानने वाली है उनको बैठने के लिए चौकी देकर स्वयं चाय बनाने चली गयी ।जब चाय बना लायी तो उसे देखकर ललिता ताई बोली,"हे री बहूरिया मनने सुना है बहुत सामान लायी है तू मायके से इन भुखो का घर भर दिया तूने तो।"सुमन चुपचाप उनकी बातें सुनती रही वह समझ गयी थी कि ये आग लगाने वाली औरत है घरों मे शायद।तभी ललिता ताई बोली ,"हे री तेरी सास ने क्या दिया तुझे मुंह दिखाई ।मुझे पता है इन कंगलो के पास क्या होगा देने के लिए।"
सुमन ने गौर से ललिता ताई को देखा फिर बोली,"अम्मा जी ।मेरी सास की छोड़ो आप बताइए आप क्या लाई है मेरी मुंह दिखाई के लिए।"
इतना सुनते ही ललिता ताई अपनी लाठी उठा कर खडी हो गयी ओर बोली,"हेहेहे मै क्या दे सकती हूं तुझे।"
सुमन ने भडकते हुए कहा ,"सीख ।आप मुझे सीखाने आयी थी ना ताकि हमारे घर मे कलह हो जाए।ऐसा है अम्मा जी पैसा क्या है वो तो हाथ का मैल है। जिन्होंने मुझे अपनी कोख से जाया सर्वगुण संपन्न बेटा दे दिया और क्या देगी वो मुझे इससे बढ़कर ।और हां आप भजन कीर्तन मे ध्यान लगाया करे ना कि लोगों के घरों के बरतन बजवाने मे।"
ये कह कर सुमन ने हाथ के इशारे से ललिता ताई को गेट की तरफ बढ़ने का इशारा कर दिया।वह भौचक्की रह गयी।वह अपनी लाठी टेकती हुए जैसे ही दरवाज़े से बाहर हुई ।सुमन ने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया ताकि ऐसी नरात्मक विचार फिर से उसकी गृहस्थ बगिया मे प्रवेश ना कर सके।