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कहां-कहां ना भटका में एक हंसी शाम की खातिर जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर एक वह ना मिला मुझे बाहर तकदीर मेरी मयखानों न
(1) मै हार मे भी जीत का आनंद ले रहा हूँ मै कॉटो मे भी फूलों की सुगंध ले रहा हूँ
ग़म के सागर में है डूबा दिल हमारा देख लो कत्ल कर के मुस्कुराए कातिल हमारा देख लो क्यों भला ना दाग दे उनको तीरंदाजी की जॉ भी है और जिस्म भी घायल हमारा देख लोक्या खबर थी आज ही दरिया में त
कहते हैं लोग ख्वाब मे मै गीत लिखा करता हूँ अपने दुश्मन को भी मै तो मीत लिखा करता हूँ बदलकर जब दिनो के फेर आते हैं मकड़ी के जाल मे भी शेर आते हैं तक़दीर तेरे दिये हर पल को मैं रीत लिखा करता हूँ दोस्तों
दुल्हनिया एक तरफ रख दो एक तरफ रख दो माल मुंह भर भर के क्यो दूल्हा मांगे कैसे हो वो कंगालएक हाथ में हाथ दुल्हन का दूजे हाथ दहेज 10 तोले सोना देकर अपने साथ हमारी भेजकदमों में जो रख
(1) कहां-कहां ना भटका मैं एक हसीन शाम की खा़तिर जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर एक वो ना मिला मुझे अरे वाह री ऐ तक़दीर मेरी