(1) कहां-कहां ना भटका मैं एक हसीन शाम की खा़तिर
जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर
एक वो ना मिला मुझे अरे वाह री ऐ तक़दीर मेरी
मयख़ानो ने ठुकरा दिया बस एक जाम की खातिर
(2) देखे हैं रुख बदलते हमने हवाओं के
हमको मिली जताएं बदले वफाओ के
मांगा था मरहम मैंने जख्मों के वास्ते
भेजा ज़हर किसी ने बदले दवाओ के
( 3) दोस्त हैं गम मेरे बस यही मेरे काम आते हैं
मेरी तिशगी लिए अक्सर खाली जाम आते हैं
मैं सजाए बैठा हूं भीलनी की तरह राहो को
देखता हूं मुझसे मिलने कब मेरे राम आते हैं
Birju Chauhan