" चौपाई, श्रृंगार रस"मुरली हाथ गले मह माला पितांबर सोहे गोपालामोर पंख मुकुट नंदलाला चैन चुरा जाए बृजबाला।।-१मातु यशोमति भवन अटारी हर्षित हृदय सुखी महतारीगोकुल की सब गैया न्यारी ग्वाल बाल सब हुए सुखारी।।-२लखि राधे की नरम कलाई चुड़िया बेचन चले कन्हाई बरसाने की गली निराई तब म