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चरागों में ढूढ़ता है

11 अगस्त 2016

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चरागों में ढूढ़ता है रोशनी यारों।

ख़ुद से कितना दूर है आदमी यारों।।

 

क्यूं ख़याल इतना क्यूं तड़प इतना है।

बस चार दिन की है जिंदगी यारों।।

 

तेरा खुदा अलग है मेरा खुदा अलग।

ये किस तरह की है हमारी बंदगी यारों।।

 

चल मिलके एक दुनियां बनाते चलें।

जहॉ हो न हरगिज दुश्मनी यारों।।

 

मेरे मुख़ालिफ मेरे होने लगे हैं सब।

नज़्म की देखकर मेरे वानगी यारों।।

 

वो मिली भी तो उस मोड़ पर मिली।

बुझ गई जब दिल की तिस्नगी यारों।।

 

सच है की किसी ने मेरी खुशी लुटी।

मगर दे गई बदले में मौसिकी यारों।।

  

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चरागों में ढूढ़ता है

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चरागों में ढूढ़ता है रोशनी यारों।ख़ुद से कितना दूर है आदमी यारों।।  क्यूं ख़याल इतना क्यूं तड़प इतना है।बस चार दिन की है जिंदगी यारों।। तेरा खुदा अलग है मेरा खुदा अलग। ये किस तरह की है हमारी बंदगी यारों।। चल मिलके एक दुनियां बनाते चलें। जहॉ हो न हरगिज दुश्मनी यारों।। मेरे मुख़ालिफ मेरे होने लगे हैं सब।

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