तल से क्षितिज तक अगाध जल लिए
नदी अनवरत अपने पथ बह रही है
सरिता की मद्धिम मधुर ध्वनि में
जाने किस भाषा में कुछ कह रही है
पर क्या उस पर इस कारण से ही
मन में तनिक संदेह न करे कोई कि
- वह कभी बॉधों को न तोड़ेगी
वह कभी किसी और पथ पर न दौड़ेगी
जबकि उसको किनारों से लड़ना आता है
पथ कैसा भी हो उसको बस बढ़ना आ हिंदी ता है।