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पदचिन्ह

20 जून 2016

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मैं देखकर झुठला जाता था
नहीं भाता था
रास नहीं आता था
उस दृश्य 
उस नक्शे का ज्ञान
जानबूझ कर हो जाता था
मार्गदर्शन से अनजान।

अबोधावस्था से होते हुए
अंततः बोधावस्था की ओर गया
फिर भी तनिक न आई हया
सो भटकता रहा
ठोकरें खाकर सर पटकटा रहा।

जब जीवन ने बहुत रुलाया
कदम - कदम पे अड़चनों ने सताया
तब जाकर कहीं अकल आया
और ऑखों के द्वार पर लगा हुआ
स्याह पर्दा हट पाया।

अतः माता पिता द्वारा हर पल
प्रस्तुत किया जाने वाला पदचिन्ह
मैं अपनी ऑखों से देख पाया
और ज्योंही उन पदचिन्हों पर 
प्रथम कदम रखा
त्योंही अनुभूति हुई
कि
माता पिता द्वारा मार्गदर्शित इन रास्तों के 
पदचिन्हों पर चलना
कितना सरल है
कितना अंगिकार योग्य है
कितना श्रेयस्कर है
कितना उपयुक्त, आवश्यक व हितकर है
जिससे श्रेष्ठ न कोई गुरु
न कोई मित्र
व न ही कोई मार्गदर्शक है।

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संदेह

9 जून 2016
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बूंदे

20 जून 2016
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जिंदा लोग

20 जून 2016
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 मैं ही मुझसे प्रश्न करता हूॅअक्सर किये सड़कों पर चलते हुए लोगउपर से शीतल भीतर से जलते हुए लोग पग - पग पर ही स्वयं को छलते हुए लोग क्या जिंदा हैं ये लोग?

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हत्या

20 जून 2016
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 मैं देखकर झुठला जाता थानहीं भाता थारास नहीं आता थाउस दृश्य उस नक्शे का ज्ञानजानबूझ कर हो जाता थामार्गदर्शन से अनजान।अबोधावस्था से होते हुएअंततः बोधावस्था की ओर गयाफिर भी तनिक न आई हयासो भटकता रहाठोकरें खाकर सर पटकटा रहा।जब जीवन ने बहुत रुलायाकदम - कदम पे अड़चनों ने सतायातब जाकर कहीं अकल आयाऔर ऑखों क

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चरागों में ढूढ़ता है

11 अगस्त 2016
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सरसो का फूल

12 अगस्त 2016
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