दावेदारी की यूं तो खुमारी सबको है,
खुमारी की यह बीमारी गालिबन सबको है,
मगर, यथार्थ खुद अबला-बेचारी है, पता सबको है।
फिर, रहस्यवाद का अपना यथार्थ है,
रहस्य क्या है कि सबका अपना स्वार्थ है,
अहसास का रहस्यवाद से गहरा संवाद है,
जो महसूस होता है, उसका जायका, स्वाद है,
फिर दिमाग में भरे पाखंड का गुलाबी मवाद है।
जिद की गुलाबी खुशबू से मन खुशगवार होता है,
यथार्थ में रहस्यवाद की खुशबू असरदार होता है,
सत्य उसी की दासी जो शख्स बेइंतहा दमदार होता है,
यथार्थ की जमीं पर पाखंड का पेड़ फलदार होता है,
बुद्धिमान का इसी बागवानी से सरोकार होता है,
नहीं तो जिद का खंजर सीने के आरपार होता है।