उम्र से
पूछिये, लम्हों का सिला,
खुद से पूछिये, दूसरों का गिला,
जूते जानते हैं, कौन कितना चला,
दौलत वही, जो ऐन जेब से निकला...
दूर तलक जो काफिला निकला,
गंुजाईश को हमसफर भी मिला,
मीर नहीं मैं, न गालिब से मिला,
जो बसर हुई, वही कह के निकला...
यही कौम है, ऐसे ही चले है काफिला,
बदनसीबी को खुशफहम ’महबूब’ मिला,
क्या कीजे तज़किरा-ए-सिलसिला,
न सिला, न गिला, जो भी मिला...
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