जिंदगी बेहद मुख्तसर,
इसकी रस्मे-अदायगी,
गोया और भी मुख्तसर...
बन पड़ते हैं गाहे-बगाहे,
शफकत-अखलाक के अवसर,
खुलती हैं दिलों की खिड़कियां,
सबा आती है, मगर, पल भर,
फिर वही, पुरानी सी वीरानगी...
कमाल है, अपनों की दीवानगी...
तहजीब की, फुलझड़ी सी रवानगी...
बस चंद कतरे अल्फाज परोसिये,
या फिर इमोजी से बसर कर लीजिये
बेदिली ही
सही, शुक्रिया अदा कीजिये...!
गर इश्क है, रिश्ता है,
बाहम सुकूं का वास्ता है,
शब्द का दिल से नाता है,
चेतना को ईमान भाता है,
निबाह को फिक्र रास आता है,
तो सुख का लंबा रास्ता है,
सांस का उम्र से यही नाता है,
दिल क्या कुछ और
चाहता है...!