पर कारोबार चले,
भरोसा न भी चले,
जिंदगी चलती चले,
चलन है, तो चले,
रुकने से बेहतर, चले,
न चले तो क्या चले,
यूं ही बेइख्तियार चले,
सांसें, पैर, अरमान चले,
फिर, क्यूं न व्यापार चले,
सामां है तो हर दुकां चले,
हर जिद, अपनी चाल चले,
अपनों से, गैर से, रार चले,
इश्क है, न हो तब भी चले,
खोटे सिक्कों से असूल चले
पुराने नोटों के अख़लाक चले,
उनकी बदजात सियासत चले,
आवाम की आवारगी भी चले,
अहद लोमड़ी की चाल चले,
पशेमानी अब बेशर्मसार चले,
भीड़ का गुस्सा बेहिसाब चले,
मासूम पे नंगी तलवार चले,
जुनून मदमस्त बेपरवाह चले,
वहशीपने की दावत में सब चले,
गुल की जात से नफरत चले,
आओ कि गुलशन का करोबार चले...