दुःख सी
हसीन तो
कोई दिलरुबा ही नहीं,
हर लम्हा रहे जो
जेहन में
असल महबूबा भी वही,
लाख चाहूं कि
निकल जाए
जिंदगी से मेरी,
बेशर्म लिपटी है
कलेजे से
कि जाती ही नहीं,
कहती है, कमबख्त
बिफर के अजब नाज से,
दुःख हूं, रिश्ता नहीं,
मौत तक पीछा छोड़ूंगी नहीं,
मै ही लोरी, गज़ल भी मैं,
फातिहा पढ़ूंगी मैं ही...
तुझसे निबाह है, ऐ दुःख,
तू रुला ले, यही सही,
मैं नामुराद-नातवां सही,
मुझे बेहद कद्र है तेरी,
तेरी ही
शोलों से बीजे हैं
अपने वजूद के महकते गुल,
तेरी मुहब्बत के
बेल-बूटे
उम्र की कमाई है मेरी,
तू है, तेरा पैराहन है,
कफन की आरजू भी नहीं,
तेरी सोहबत के
तहजीब
गोया अब शिनाख्त हैं मेरी,
बिन तेरे इस वीरानगी में,
अपना तो कोई वजूद ही नहीं,
तू है, तेरा हुस्न-ओ-इश्क है,
इससे बेहतर कैफियत ही नहीं...