“अदला बदली” ( कहानी अंतिम क़िश्त )
अब तक-- दिलावर खान और उसके 10 साथियों को गिरफ़्तार कर लिया गया , और ज़ेल में डाल दिया गया ।
इससे आगे -- सरवर गुलाम जैसे ही अपने गांव हबीबाबाद पहुंचा , वहां खुशियों की लहरें दौड़ गईं । सबसे ज्यादा खुश सरवर की बीबी सायरा हुई ,पर जब उसे यह मालूम हुआ कि उसका बेटा दिलावर पकड़ा गया है और ज़ेल में बंद है तो वह ज़ार ज़ार रोने लगी।
दिलावर खान को अब जैसलमेर से अमृतसर की ज़ेल में ट्रान्सफ़र कर दिया गया था । वहां उस पर और उनके साथियों पे मिलिटरी कानून के तहत मुकदमा चलने लगा । अपने बचाव में दिलावर ने कहा कि उसके पिता सरवर गुलाम एक हिन्दोस्तानी सिपाही थे । 3 वर्ष पूर्व की जंग में वह लड़ई के दौरान धोखे से पाकिस्तान के एक गांव पहुंच गये और वहीं रहने लगे । उसके कुछ समय के बाद उसे अपने वतन में वापस आने का मौक़ा मिला तो वह भारत आ गए। पर यहां उसे भारतीय सैनिकों के द्वारा बंदी बना लिया गया । वे कहते रहे कि मैं एक भारतीय सैनिक हूं पर किसी ने माना नहीं और उन पर भारतीय सैनिक ज़ुल्म ढाते रहे । मैं सरवर गुलाम उर्फ़ राम गुलाम का बेटा हूं । उन्होंने हबीबाबाद में मेरी अम्मी के साथ निकाह किया है । जब उनकी जुदाई मेरी अम्मी को बर्दास्त नहीं हुई तो अम्मी ने मुझे कसम दी कि ज़िन्दगी में अब तुम्हारा एक ही मकसद होना चाहिए । अपने अब्बू को आज़ाद कराना ।
अत: मैंने पुत्र धर्म निभाने यह काम भी किया , लेकिन मैंने हिन्दोस्तान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है । मैं सोच भी नहीं सकता कि भारत का किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाऊं क्यूंकि यह देश मेरे दादा दादी व पिता की जन्म भूमि है । मैंने यह काम सिर्फ़ अपने माता पिता को मिलाने और अपने पिता को अन्याय से छुटकारा दिलाने किया है । भारतीय संस्कृति के अनुसार तो मैंने अपने पुत्र धर्म का पालन किया है । इसके अलावा ये मेरे सारे साथी बिना किसी लालच व मोह के इस पुण्य के काम में मेरे साथ खड़े रहे। फिर आज की तारीख में भारत और पकिस्तान के बीच संबंध सुधर चुके हैं और दोनों देश अब भाई चारा की बातें कर रहे हैं । अत: जज साहब आपसे गुज़ारिश है कि हमारे पाक मकसद को देखते हुए, मुझे चाहे जो भी सज़ा दें पर मेरे सारे साथियों को रिहा कर दीजिए क्यूंकि वे सब निर्दोष हैं । इतना कहते हुए दिलावर अंत में नारे लगाने लगा “ जय बजरंग बली , अल्लाह हो अकबर , हर हर महादेव , हिन्दोस्तान ज़िन्दाबाद ,पाकिस्तान ज़िन्दाबाद ।
इसके बाद दिलावर और उनके साथियों की तरफ़ से किसी और ने ज़िरह नहीं किया । दो दिनों बाद अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाया । जज ने कहा कि सारी बातों को सुनकर और समझकर कोर्ट इस निर्णय पर पहुंची है कि दिलावर और उसके साथी अवैध रूप से भारत की सरहद में घुसेने का अपराध तो किया , पर उनका मकसद एक बूढे बाप और निर्दोष पिता को ज़ेल से मुक्ति दिलाना था । जिसके बारे में वे वैध रुप से भारत के सारे उच्च सैनिक अधिकारियों को बता चुके थे और दिलावर ने अपने अब्बू सरवर गुलाम उर्फ़ रामगुलाम को छोड़ने की सैकड़ों बार निवेदन किया था पर किसी ने उसकी एक न सुनी । रामगुलाम उर्फ़ सरवर गुलाम के बारे में भारतीय सेना अनिर्णय की स्थिति में ही रही । जिसके कारण ही यह समस्या खड़ी हुई है । अत: दिलावर और उनके साथियों को भारत की सरहद लांघने के जुर्म में 2 महीने की साधारण सज़ा सुनाई जाती है । साथ ही भारतीय पोलिस व सेना को अदेश दिया जाता है कि इन सबको आज से 61 वें दिन रिहा कर दिया जाय और इन्हें सही सलामत पाकिस्तान जाने में मदद करे।
अदालत के जजमेन्ट को सुनकर दिलावर की आंखों में आंसू भर गए। उसने खुदा और ईश्वर को याद करते हुए हिनोस्तान की अदालत और न्याय प्रणाली का आभार प्रकट किया ।
दो महीने कब गुज़र गए पता बी नहीं चला । दिलावर और उसके साथी रिहा होकर पाकिस्तान पहुंच गए। सरवर गुलाम और सायरा अपने गांव हबीबाबाद में बड़े ही सुकून से ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं । वही दिलावर खान पिछले कुछ सालों में प्रमोट होकर पाकिस्तान आर्मी के पूर्वी कमान्ड का मुखिया बन गया है । अब भारत व पाकिस्तान के इस बार्डर में पूरी तरह से शान्ति का माहौल है ।
उधर हबीबाबाद में वास्तविक सरवर गुलाम का क्या हुआ कोई नहीं जानता ? भले ही हबीबाबाद के सारे बाशिन्दे यह जान गए हैं कि सरवर गुलाम मूलत: एक हिन्दोस्तानी है पर इस बात से उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं है क्यूंकि वे सब उसे अपना दामाद मानते हैं ।
उधर रामगुलाम जी की एक ही दिली इच्छा है कि मैं स्वतंत्र रुप से कम से कम एक दफ़ा अपने देश जाऊं और वहां की मिट्टी कोअपने माथे पर लगाऊं । साथ ही अपने पित्र तुल्य गांव देवकर की गलियों में एक बच्चे की तरह गिल्ली , भौंरा व बंटी का खेल खेलूं । देखते हैं कि उनकी यह पाक इच्छा कभी पूरी होतै है या नहीं ।
*समाप्त *