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अदला-बदली ( कहानी-- पांचवीं क़िशत )

3 नवम्बर 2022

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“अदला बदली”  ( कहानी पांचवीं क़िशत  )

( अब तक-- इस बाबत मैं अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार के सरमाएदारों के पास भी जाऊंगा और भारतीय सेना के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत करूंगा )

इससे आगे --'इसके बाद दिलावर अपने वतन वापस आ गया और एक कड़ा फ़ैसला कर लिया । इसके बाद उसने अपने 25 साथियों को तैयार कर लिया गोरिल्ल युद्ध करते हुए अपने पिता को भारत स्थित जैसलमेर ज़ेल से बाहर निकालने के लिए ।  उसने पकिस्तान के सैनिक गुप्तचर शाखा से भी मदद मांगी । जो उसे मिलने भी लगी । 
दो दो चार के ग्रुप में उसके सारे मददगार साथी महीने भर के अंदर जैसलमेर पहुंच गए। कारागार का नक्शा जुटाया गया । पहरेदारों की संख्या का आंकलन किया गया और ज़ेल में घुसने और निकलने के मुफ़ीद रास्तों का चयन किया गया । उस ज़ेल में दो मुसलमान लंबरदार थे , उन्हें ईसानियत और क़ौम का वास्ता देकर अपनी मदद के लिए तैयार कर लिया गया । 

दो महीनों की कड़ी मेहनत के बाद दिलावर और उसके साथी एक सुरंग बनाकर ज़ेल के अंदर दाखिल हो गए। सरवर खान की बैरक तक उन्हें ज़ेल के दो भारतीय मुसलमान पहरेदारों  साथियों ने पहुंचाया । 
दिलावर ने सबसे पहले अपने अब्बू सरवर गुलाम को सलाम किया और अपना परिचय देते हुए उन्हें ज़ेल से बाहर ले जाने का प्लान बताया। वे सब फिर वापसी के रस्ते एक एक करके बढने लगे । तभी ज़ेल के रात के पहरेदारों को ऐसा आभास हुआ कि ज़ेल में कुछ तो गरबड़ है । बस उन लोगों ने आपात सायरन बजा दी । फिर तो बहुत सारे ज़ेल के प्रहरी रायफ़ल लेकर चारों तरफ़ फ़ैल कर चेक करने लगे । ज़ेल के पांच प्रहरी सुरंग के पास पहुंचकर लोगों को रुकने का हुक्म दिया और उन्हें चेताया कि अगर तुम लोग नहीं रुकोगे तो हमारी गोलियों को झेलना पड़ेगा । पर उन पांचों प्रहरी के सामने दिलावर के साथ जुड़े ज़ेल के दो मुसलमान प्रहरी दीवार बनकर खड़े हो गए। जिसके कारण दिलावर और उसके अब्बू सरवर ज़ेल से बाहर निकल कर बहुत दूर चले गए । पर उन्हें रोकने के लिए उन दो मुसलमान प्रहरियों को अपनी जान गंवानी पड़ी ,जो दिलावर को सहयोग कर रहे थे । 

ज़ेल के बाहर 10 ऊंटो का प्रबंध किया गया था । वे सब उन उंटों पर सवार होकर बार्डर के पास पहुंच गए। उस जत्थे में सबसे आगे सरवर खान था और सबसे पीछे दिलावर था । जब उनके आधे लोग बार्डर क्रास करके पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए तब भी पीछे से भारतीय सेना वहां पहुंच गई और दिलावर खान और उसके 10 साथियों को गिरफ़्तार कर लिया गया , और ज़ेल में डाल दिया गया । 

( क्रमशः)
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रचनाएँ
अदला-बदली (कहानी-प्रथम क़िश्त )
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रामगुलाम लड़ाई के दौरान धोखे से पड़ोसीदेश की सरहद को पार करके उनके एक गांव पहुंच जाता है।
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