“अदला बदली” ( कहानी--तीसरी क़िशत )
अब तक-- रामगुलाम की अपील भारत सरकार के हर दफ़्तर से खारिज़ हो गई और उसे एक पाक सिपाही सरवर गुलाम ही माना गया ।
( इससे आगे --)
कई साल और गुज़रे तो भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होने लगा । अत: युद्ध बंदियों की अदला बदली की प्रक्रिया भी प्रारंभ होने लगी थी ।
सरवर गुलाम द्वारा बार बार यह कहने से कि वह भारतीय सिपाही रामगुलाम है , भारतीय सैनिक अधिकारियों ने उसकी बातों को माना तो नहीं पर कोई गल्ती न हो जाए यह सोचकर उसके बारे में न पाक सैनिक अधिकारियों को बताया न ही उसे छोड़ा ।
उधर पाकिस्तान में रामगुलाम उर्फ़ सरवर गुलाम का बेटा दिलावर खान 19 साल का हो गया । रामगुलाम की पत्नी सायरा अक्सर अपने बेटे दिलवर खान से कहती कि जाओ अपने अब्बू के बारे में पता लगाओ और उन्हें यहां वापस लाने का रास्ता बनाओ।
एक साल के अंदर दिमाग से होशियार दिलावर खान पाक डिफ़ेन्स एकादमी पास करके पाक सेना का कैप्टन बन गया । उसके ज़िम्मे राज्स्थान की सीमा को ही देखना था । जब उसने अपने सोर्स से पता लगाने की कोशिश की तो 4 महीनों बाद उसे पता चला कि पाकिस्तान का एक सिपाही जैसलमेर ज़ेल में पिछले 22 सालों से बंद है । उसकी पहचान की तस्दीक नहीं हो पाई है इसलिए भारतीय सेना ने उसे पाक के अधिकारियों को अभी सौंपा नहीं है ।
दिलावर ने फिर नये सिरे से भारतीय सैनिक अधिकारियों से अपने अब्बू संबंधित पत्र व्यौहार प्रारंभ किया । उसमें उसने लिखा कि मेरे अब्बू सरवर खान जैसलमेर ज़ेल में कैद हैं , फिर भी आप लोगों ने युद्ध बंदी की अदला बदली के दायरे में उन्हें हमें सौंपा नहीं है । जब दोनों देश के बीच समझौता हो चुका है कि युद्ध बंदियों को हर हाल में छोड़ा जाना है तो आप लोगों ने उन्हें रिहा क्यूं नहीं किया ,पर किसी ने भी उसके खत का जवाब नहीं दिया ।
अंत में दिलावर ने फ़ैसला किया कि अपने कुछ साथियों के साथ अवैध रूप से भारत की सीमा में प्रवेश किया जाय और जैसलमेर जाकर अपने अब्बू को किसी भी तरह से छुड़ा कर लाया जाय । चाहे इसके लिए खून ही क्यूं न बहाना पड़े ? पाक अधिकारियों ने भी दिलावर खान के इस प्लानिंग में माकूल मदद पहुंचाने का भरोसा दिलाया । दिलावर सारी तैयारी करके एक महीने के अंदर ही जैसलमेर पहुंच गया । वहां पोस्टे्ड एक कर्नल कलीम खान से उसकी दोस्ती थी । उसकी सहायता से वह अपने अब्बू से मिलने एक दिन ज़ेल पहुंच गया । उन्हें देखते ही दिलावर पहचान गया कि यही मेरे अब्बू सरवर खान है । दिलावर को उसकी अम्मी ने उसके अब्बू के कद ,काठी, सूरत , उंचाई व रंग रूप के बारे में बताया था । जो सामने वाले शख़्स से पूरी तरह मिल रहा था । बस दाढी और उम्र् का अंतर ही दिख रहा था ।
यह सब देखने के बाद दिलावर ने फिर भारतीय सैन्य अधिकारियों से गुहार करने लगा कि मेरे पिता सरवर युद्ध बंदी हैं । वे पाकिस्तानी सिपाही हैं । उन्हें युद्धबंदी समझौते के तहत आपको पाक अधिकारियों को सौंपना था पर आप लोगों ने उन्हें सौंपा नहीं और आज तक बंदी बनाकर रखा है । मैं उनका बेटा हूं अब मेरे पास एक ही रास्ता है कि मैं मानवाधिकार से जुड़े संगठनों से गुहार लगाऊंगा और भारतीय सेना के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत करूंगा ।
( क्रमशः )