“अदला बदली” ( तीसरी क़िश्त )
(अब तक--- सरवर उधर ही तेज़ी से दौड़ परा और ऊंटो के जथ्थे की आड़ में छिपते छिपाते वह अपने देश की धरती में पहुंच गया --)
( इससे आगे--) वहां पहुंचते ही सरवर उर्फ रामगुलाम ने सबसे पहले धरती मां की मिट्टी का माथे पर तिलक लगया। फिर मिलिटरी ड्रेस को त्यागकर सादे कपड़ों में आगे बढने लगा । मुश्क़िल से आधे घंटे चला होगा कि उसे भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने पकड़ लिया । उस पर इल्ज़ाम लगया गया कि दुश्मन देश के जासूस हो । उसके हाथों पर सरवर खान वाला गोदना भी उसकी हबीबाबाद वाली अम्मी शाहिन बी ने गुदवा दिया था । इसके अलावा सरवर उर्फ़ रामगुलाम ने पाकिस्तान में न जाने कब तक रहना पड़ेगा यह सोचकर शहर जाकर अपना खत्ना भी करवा लिया था । इन दो सबूतों के बिना पर उसे पाक जासूस मानते हुए जैसलमेर ज़ेल में युद्ध बंदी के रूप में डाल दिया गया । वह चीखता रहा कि मैं एक भारतीय सिपाही रामगुलाम हूं पर उसकी बातों को सुननए वाला वहां कोई नहीं था ।
उधर रामगुलाम के पैत्रिक गांव देवकर में उनके माता पिता को इंडियन आर्मी के द्वारा बता दिया गया था कि रामगुलाम शहीद हो गया है । हालाकि उन्हें रामगुलाम का शव नहीं मिला था ।
हबीबाबाद में 9 महीने बाद सायरा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बच्चे का नाम दिलावर खान रखा गया ।
समय गुज़रता रहा सरवस खान उर्फ़ रामगुलाम अपने ही देश की ज़ेल में सड़ता रहा । उसके पास हर दस दिनों में इंडियन फ़ौज़ के चार अधिकारी आते और उससे पाक सेना की प्लानिंग के बारे में पूछते रहते ।
रामगुलाम ने अपने माता पिता व अपने गांव देवकर का हवाला दिया तो वहां से खबर आई कि उनका पुत्र तो 2 वर्ष पूर्व ही शहीद हो गया है । ऐसा हमें सेना के अधिकारियों ने बताया है । और अपने बेटे के हक का हमें राशि भी मिलने लगी है ।
धीरे धीरे रामगुलाम उर्फ़ सरवर खान पर इंडियन आर्मी का ज़ुल्म बढता गया । और उसकी आवाज़ कमज़ोर पड़ती गई । दो सालों तक प्रताड़ना झेलते झेलते वह अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठा । अब वो कभी लोगों को अपनी पहचान भारतीय सिपाही रामगुलाम बताता तो कभी वह अपने आपको पाक सिपाही सरवर खान बताता ।
उसकी अपील भारत सरकार के हर दफ़्तर से खारिज़ हो गई और उसे एक पाक सिपाही सरवर गुलाम ही माना गया ।
( डॉ संजय दानी दुर्ग )