घर वालों ने तो बेटे का नाम लव रखा था पर उन्हें भी क्या पता होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनका बेटा एन्टी-लव फिल्में बना बनाकर ही अपने लिए नाम कमा लेगा। कुछ फ़िल्म आलोचक उन पर भले ही महिला विरोधी होने का ठप्पा लगा दें पर अताउल्ला खान और हिमेश रेशमिया के टूटे दिल वाले गानों पर आंसू बहाने वाले आशिक़ों के लिए लव रंजन से बेहतर उनका दर्द समझने वाला, कम से कम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तो कोई और पैदा नही हुआ।
यश चोपड़ा, सूरज बड़जात्या, करण जौहर टाइप फ़िल्म डायरेक्टर्स ने प्यार के नाम पर हिंदुस्तानियों का बहुत पागल बनाया हैं। सच्चा आशिक मरते दम तक एक ही बार प्यार करता हैं, अपने प्यार की खुशी के लिए अपनी जान तक दे देता हैं जैसी बकवास बार बार दिखाकर जितना नुकसान हिंदी फिल्मों ने भारतीय युवाओं के दिमाग को पहुंचाया हैं उतना तो शायद उड़ता पंजाब में दिखाई गयी ड्रग्स वाली समस्या ने भी नही पहुँचाया होगा जो पंजाब चुनाव के बाद ए\nकदम से हवा में छूमंतर हो गयी।
2011 में लव रंजन ने सदियों से बनाई जा रही रोमांटिक फिल्मों में दिखाए गए प्यार का बेदर्दी से पंचनामा किया तो धोखा खाये आशिक़ों को सिनेमा में पहली बार अपनी ज़िन्दगी की कहानी दिखी, 2015 में एक बार और किये पंचनामे में जो कुछ बचा खुचा रह गया था वो भी निपटा दिया गया और इस बार Sonu के Titu की Sweety लेकर आये हैं। फ़िल्म के ट्रेलर में ही शुरू से अंत तक सारी कहानी दिखा दी गई हैं तो सस्पेंस का कोई स्कोप नही हैं। बचपन के दो दोस्त हैं, एक की शादी के लिए घर वालों ने सर्वगुण सम्पन्न लड़की ढूंढ ली हैं, लड़का लड़की दोनों एक दूसरे को पसंद भी कर लेते हैं पर दोस्त को यकीन हैं कि ऐसी कोई लड़की दुनियां में हो ही नही सकती तो किसी भी तरह इस शादी को रोकना चाहता हैं और लड़की चैलेंज दे देती हैं कि बेटा रोक सकते हो तो रोककर दिखाओ। रामायण काल से आज तक प्रेम त्रिकोण में 2 लड़कों को एक लड़की के लिए या फिर 2 लड़कियों को एक लड़के के लिए लड़ते हुए दिखाया जाता रहा हैं हालांकि यहां पर पहली बार एक लड़के के लिए एक लड़की और एक लड़के को जंग करते हुए दिखाया गया हैं पर ट्रिक्स ज्यादातर पुरानी कॉमेडी फिल्मों वाली ही हैं।
सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा हैं पर आलोक नाथ का असंस्कारी रूप ज़बरदस्त कम और ज़बरदस्ती का ज्यादा लगा हैं। लड़कियों की सारी कमियां तो 2 पंचनामों की रिपोर्ट में दिखाई ही जा चुकी थी तो इस बार फ़िल्म में लड़की की बस एक ही कमी दिखाई गई हैं कि वो एक लड़की हैं जिसकी वजह से फ़िल्म से कोई खास कनेक्शन नही बन पाता और पहली 2 फिल्मों के मुकाबले आधा मनोरंजन भी नही कर पाती। कुछ संवाद और दृश्य हंसी ज़रूर लाते हैं पर एक ही गाली को बीप बीप के साथ जरूरत से ज्यादा घसीटा जाना धोनी के मनीष पांडे को गाली देने से भी ज्यादा अखरता हैं। संगीत ठीक ठाक हैं पर इंटरवल के बाद तो एक के बाद एक गाने चित्रहार की तरह बजाए गए हैं जो फ़िल्म को लंबा करने के अलावा कुछ नही करते।
ऐसा नही हैं कि फ़िल्म देखी नही जा सकती बस प्यार का पंचनामा वाली उम्मीदें लेकर न जाएं और क्लाइमेक्स से तो कोई उम्मीद ही न रखें क्योंकि इससे ज्यादा थकेला अंत तो शायद हो ही नही सकता था पर जैसा कि अरिजीत सिंह ने ए दिल हैं मुश्किल में गाया हैं कि “सफ़र खूबसूरत हैं मंजिल से भी”, इस फ़िल्म की मंजिल भले ही जैसी भी हो, सफ़र में टाइमपास तो ठीक ठाक हो ही जायेगा।