वर्ष 2001 में सब टीवी का एक कार्यक्रम ऑफिस ऑफिस बहुत लोकप्रिय हुआ था। सरकारी दफ्तरों में ऊपर से नीचे तक फैली हुई कामचोरी और रिश्वतखोरी के ऊपर बने इस कार्यक्रम में एक किरदार सरकारी कर्मचारी पटेल का था जो आम आदमी को दो बातों के लॉजिक के साथ अपने जाल में फंसाने का काम करता था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के Euthanasia यानि कि इच्छामृत्यु के ऊपर दिए गए ऐतिहासिक निर्णय की सब तरफ प्रशंसा हुई क्योंकि लोगों को लगा कि हम सुकून से भले ही जी न पाएं लेकिन अब मर तो सकते ही हैं पर शायद किसी ने इसके नियम और शर्तों पर ध्यान नही दिया। अगर दे देते तो पटेल की 2 बातों की यादें ताज़ा हो जाती। चलिए आपको इन शर्तों के टूर पर ले चलते हैं।
इच्छा मृत्यु के लिए सबसे पहले तो आपको अपनी ज़िन्दगी की वसीयत लिखनी हैं और उसमें इच्छा मृत्यु की घोषणा करके दो गवाहों और मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर करवाने हैं। अब आप सोचेंगे कि लो इसमें क्या बड़ी बात हैं। हमारे पड़ोस में ही एक वकील खाली घूमता फिरता हैं, बनवा लेंगे उससे पर साहब ये अंत नही शुरुआत भर हैं। आपने वसीयत लिखी और लिखकर कही संभालकर रख दी इस उम्मीद के साथ कि जरूरत ही न पड़े और भगवान करे किसी दुश्मन को भी इसकी ज़रूरत न पड़े पर अगर बदकिस्मती से ज़रूरत पड़ गयी तो फिर आप ऑफिस ऑफिस के मेगा एपिसोड के लिए तैयार हो जाइए।
सबसे पहले तो आपको या आपके रिश्तेदारों को आपका इलाज़ कर रहे डॉक्टर साहब को राज़ी करना हैं कि वो आपकी इच्छा मृत्यु वाली इच्छा पूरी करने में मदद करे। इसके लिए उन्हें आपकी वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले मजिस्ट्रेट से आपकी वसीयत की जांच करवानी पड़ेगी। आप अभी भी उसी शहर में हैं या नही, मजिस्ट्रेट साहब हैं या निकल लिए, हैं तो कहां हैं, आप होश में हैं या नही, डॉक्टर के पास ये सब करने का टाइम हैं या नही, इन सब वजहों से 2 बातें हो सकती हैं, या तो आपकी वसीयत सही साबित हो पाएगी या नही होगी।
मानो आपके किसी अगले पिछले जन्म के पुण्यकर्म की वजह से सही साबित हो भी गयी तो फिर एक मेडिकल बोर्ड का गठन होगा जो आपकी हालत की जांच करेगा जिसके बाद दो बातें होंगी या तो वो वसीयत लागू करने को राज़ी होगा या फिर नही होगा। मानो किसी तरह हो गया तो अस्पताल कलक्टर साहब को सूचित करेगा जो मुख्य चिकित्सा अधिकारी की अध्यक्षता में 3 एक्सपर्ट्स डॉक्टर का एक और मेडिकल बोर्ड बनाएगा। आपका एक बार फिर मुआयना होगा जिसके बाद फिर से 2 बातें होंगी या तो बोर्ड वसीयत लागू करने की सहमति देगा या नही देगा। मानो सहमति दे दी तो बोर्ड इसकी सूचना मजिस्ट्रेट को देगा जो आपको साक्षात देखने अस्पताल आएंगे।
सबसे पहले तो इस देश में आप मजिस्ट्रेट की इजाजत वाले लेवल तक भी पहुंच जाए तो आप ही नही आपके रिश्तेदार भी खुद को मोक्ष प्राप्त किया समझ लेंगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर से दो बातें होंगी या तो वो वसीयत लागू करने की इजाजत देंगे या नही देंगे। अगर इजाजत मिल गयी तो आपको दीन दुनियां से मुक्ति दिलाने के लिये आपका खाना पीना, दवा दारू सब बन्द करके मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा और अगर किसी भी स्तर पर इजाजत नही मिली तो फिर 2 बातें होंगी या तो आप एक बार फिर मरने का इंतज़ार करते रहेंगे या फिर हाई कोर्ट में अपील करेंगे।
अब हाई कोर्ट के पेंडिंग मुकद्दमों की हालत तो आपको पता ही है। सालों से लोग बिना सुनवाई के जेलों में सड़ रहे हैं तो ये बताने की ज़रूरत नही कि आपको भी सालों साल इंतज़ार करना पड़ सकता हैं क्योंकि न तो आप कोई सेलेब्रिटी हो और न ही नेता और अगर इतना इंतज़ार करना ही हैं तो भैय्या क्यों रिश्तेदारों, डॉक्टर्स, अस्पताल, अधिकारियों, कलक्टर, मजिस्ट्रेट, कोर्ट, वकीलों को डिस्टर्ब कर रहे हो, चुपचाप अपना समय पूरा होने ही दीजिये। अगर आप इतनी लंबी पोस्ट के अंत तक पहुँच गए हो तो ये समझ आ ही गया होगा कि हमारे देश में आम आदमी (पार्टी वाला नही) के लिए जीना जितना मुश्किल हैं, सरकारी इजाजत के साथ मरना उससे भी कही ज्यादा मुश्किल हैं तो बेहतर हैं की जीने पर ही फोकस किया जाए। बाकी जो होना हैं सो होगा ही।
- इति इच्छा मृत्यु पुराण।
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