कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री जी ने अपने सबसे पसंदीदा विषय "कांग्रेस के काले कारनामे: नेहरू से मनमोहन तक" पर लंबा चौड़ा भाषण संसद में दिया और बैंकों के घाटे की सच्चाई बताने की कोशिश की थी पर तब मीडिया में चर्चा का केंद्र बिंदु उनका रामायण का उल् लेख बन कर रह गया जो उन्होंने एक विपक्षी नेत्री की अट्ठहास की प्रशंसा में किया था। हालांकि "मम्मी मुझे बस प्रधानमंत्री बना दो" वाले नेता राफेल पर बेतुका राग अलापते रह गए पर खुद उनकी पार्टी के लोग भी बस शूर्पणखा के गुणगान में लगे रहे।
अगले कुछ दिनों तक एक मलयालम अभिनेत्री का आंखों द्वारा अभिनय का दृश्य इतना ज्यादा पेला गया कि लोगों को उसमें बाबा रामदेव नज़र आने लगे। हालांकि हमारे सिपाही आतंकवादी हमलों में अपनी जान देते रहे पर जो बात हर रोज हो रही हो वो खबर थोड़े ही रहती हैं। इसी बीच भारत ने साऊथ अफ्रीका को पहली बार उसी के घर में हराया, मौलाना साहब को रामभक्त कहकर मुस्लिम बोर्ड से चलता कर दिया गया, भागवत जी ने RSS के अनुशासन का गुणगान किया, पर ये सब खबरें आई और गयी और किसी की खास दिलचस्पी नहीं जगी। हालात ये हो गए कि मीडिया अपना कैमरा लेकर वापिस तैमूर के डायपर में घुसने ही वाली थी कि एक और घोटाले की खबर से हड़कंप मच गया।
हुआ ये कि पंजाब नेशनल बैंक की एक शाखा के कुछ अधिकारियों ने नीरव मोदी नाम के व्यापार ी को उनकी हैसियत से ज्यादा लोन दिलवा दिया था। अधिकारी भी इतने ईमानदार कि अपने बैंक से लोन न दिलवाकर गारंटी पत्र थमा दिया कि जाओ भैया हमारी जिम्मेदारी पर दूसरे बैंक से पैसा उठा लो। कमाल की बात ये हैं कि जो बैंक कुछ लाख रुपए का उधार देने के लिये जन्मपत्री को छोड़कर बाकी सब कागज मंगवा लेते हैं उनके लिए हजारों करोड़ का उधार देने के लिए बस ये एक चिट्ठी काफ़ी होती हैं। उससे भी बड़ी कमाल की बात ये कि ATM से निकाले 100 रुपए का हिसाब तक CBS में दर्ज हो जाता हैं पर इस चिट्ठी को भेजने का हिसाब दर्ज करना हैं या नहीं ये अधिकारियों की मर्ज़ी पर हैं। करना हैं करो नही तो SWIFT करो।
अब ये मामला 2011 में शुरू हुआ और 6-7 साल से मज़े में चल रहा था। वर्तनाम प्रधानमंत्री तो चलो चाय बेचा करते थे पर दुनियां के बेहतरीन अर्थशास्त्री कहे जाने वाले हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय रिज़र्व बैंक के "सर्वश्रेष्ठ" गवर्नर रघुराम राजन जी को भी इस उल्कापिंड नुमा कमी की भनक तक न लगी। खैर जब नीरव मोदी के कंपनी वाले ऐसी ही एक और चिट्ठी लेने के लिए पंजाब नेशनल बैंक के पास पहुंचे तो नए अधिकारियों ने कहा कि हम तो पहले ही 5000 करोड़ के घाटे में चल रहे हैं बिना गारन्टी के ऐसे कैसे दे दें। कंपनी वाले बोले जैसे पिछले 7 सालों से दे रहे हो तो उनके होश उड़ गए। जांच की तो पता चला कि पुराने अधिकारी 11400 करोड़ की पर्ची फाड़ गए हैं। पैसे देने से बचने के लिए वो भागे भागे गए CBI के पास कि हमारे साथ धोखा हो गया बल्कि धोखा तो दूसरे बैंक वालों के साथ हो गया जिन्होंने पंजाब नेशनल बैंक पर अंधविश्वास कर लिया था। बैंक वालों को भी पता हैं कि किसी आम आदमी के साथ कुछ हजार का धोखा भी हो जाये तो वो उसको पैसे वापिस देने में कैसे खून के आंसू रुलाते रहे हैं, यहाँ तो 11000 करोड़ का मामला हैं। रही बात नीरव मोदी की तो किसी प्रिय मित्र की सूचना पर वो जितना समेटा गया उतना समेटकर माल्या के पदचिन्हों पर देश के कानून के लम्बे हाथों से बाहर निकल ही चुके थे।
एक समय ऐसा कहा जाता था कि पंजाब में अगर 1 ईंट उठाओ, 4 गायक मिलते हैं। अब देश का ऐसा हाल हैं कि 1 रोड़ा भी उठाओ, 10 नेता मिलेंगे। मामला सामने आया नहीं कि बीजेपी विरोधी और बीजेपी समर्थक एक दूसरे पर टूट पड़े। कांग्रेस वालों का कहना हैं कि "चलो हमारे राज में उधार लिया, भले ही धोखाधड़ी से लिया हो पर धोखा करने वाले भागते तो नही थे। हम खिलाते रहते थे वो पैसा खाते रहते थे। कभी न कभी तो वापिस दे ही देते। बीजेपी वाले उनसे पैसे वापिस लिए बिना ही भगा देते हैं"। बीजेपी वालों का कहना हैं कि "कांग्रेस राज में तो धोखेबाज लोग बेखौफ घूमते फिरते थे। हमारे आने के बाद उन्हें पकड़े जाने का डर लगने लगा हैं, इसीलिए भाग जाते हैं"। एक गुट प्रधानमंत्री के साथ नीरव मोदी की फ़ोटो दिखा कर छोटा मोदी चिल्ला रहा हैं तो दूसरा गुट कांग्रेस के वर्तनाम राजा की नीरव मोदी के साथ मेलजोल की खबरें छपवा रहा हैं। कांग्रेस का कहना हैं कि मामला तो 2016 में सामने आ गया था पर सरकार ने कुछ नही किया। अगर ऐसा ही था तो आलू डालो सोना निकालो टाइप भाषण देकर नीरव के भागने का इंतज़ार क्यों किया जा रहा था।
अब इन समर्थकों और विरोधियों को कौन समझाए कि घोटालेबाज बैंक अधिकारी न तो मोदी और न ही नेहरू परिवार के भक्त हैं। वो बस पैसे के पुजारी हैं और ये बात वो हर्षद मेहता से लेकर नोटबंदी तक पहले भी कई बार साबित कर चुके हैं। ये तो सरकार और रिज़र्व बैंक की ज़िम्मेदारी हैं कि वो बैंकों के घाटे पर राजनीति करने की जगह इन चीजों से सबक लें और घोटालों को कई साल तक छुपाए रखने वाले बैंकों पर कड़ी कार्रवाई करें। रही बात देश से भागने की तो हमारे देश में लोन देते हुए पासपोर्ट जमा करने की परंपरा तो हैं ही नही तो चाहे वो कोई गरीब किसान हो या अमीर व्यापारी, कोई भी भाग सकता हैं। गुंडागर्दी करने वाले तो लोन उठाकर इस देश मे ही बैठे रहते हैं। मज़ाल हैं कि कोई बैंक वाला हाथ भी लगा ले।
वैसे इस मामले में तो नए मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी की 5000 करोड़ की संपत्ति जब्त करके डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू कर दी हैं पर अगर रिज़र्व बैंक के आंकड़ों की मानें तो इसके जैसे 5000 फ्रॉड और मिल सकते हैं मतलब ऐसे घोटालों से होने वाला नुकसान कई लाख करोड़ तक जा सकता हैं जो शायद कभी वसूल ही न किया जा सके। पर इन सबसे हम जैसे लोगों को चिंता की कोई जरूरत नहीं हैं क्योंकि जितने पैसे हमारे खातों में हैं उतने तो नीरव मोदी जैसे लोग और उनका साथ देने वाले बैंक अधिकारी अपने कपड़े झाड़ने भर में गिरा देते हैं। देश का 73% धन 1% लोगों के हाथों में होने का आखिर कुछ तो फायदा हैं ही हमें।
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