एक समय ऐसा भी आया था जब विश्व और ब्रह्मांड सुंदरी बनना तो भारत की सुंदरियों के लिए बिल्कुल वैसा हो गया था जैसा एलियंस का दुनियां जीतने के लिए हमेशा अमेरिका पर ही हमला करना। 21 मई 1994 को जो सिलसिला सुष्मिता सेन के साथ शुरू हुआ तो एक के बाद एक खिताबों की ऐसी लाइन लगी कि सट्टेबाजों ने भारत की सुंदरियों की जीत पर सबसे ऊंचा भाव रखना शुरू कर दिया। कहने को तो इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं को महिलाओं के दिमाग और सुंदरता के जोड़ की प्रतियोगिता बताया जाता रहा पर ऐसी बातें शुरू हो चुकी थी कि ये और कुछ नही भारत की करोड़ों लड़कियों को लिपस्टिक, पाउडर और क्रीम बेचने के लिए विदेशी कंपनियों की ग्राहक पटाओ योजना भर हैं।
वर्ष
2000
में
प्रियंका चोपड़ा के विश्व सुंदरी बनते ही इन दावों को और भी बल मिल गया।
प्रतियोगिता के दौरान जब प्रियंका से पूछा गया कि आपकी नजर में दुनियां की सबसे
कामयाब "जीवित" महिला कौन सी हैं तो एक रटा रटाया जवाब आया "मदर
टेरेसा" जिनकी मृत्यु 3 साल पहले हो चुकी थी पर जैसे दाने दाने पर खाने वाले का
नाम लिखा होता हैं उसी तरह शायद पर्ची पर्ची पर जीतने वाले का नाम लिखा होता होगा
जिस वजह से प्रियंका को विजेता घोषित कर दिया गया। इस निर्णय पर खूब होहल्ला हुआ
और उसके बाद तो जैसे प्रयोजकों ने भारत को भुला ही दिया।
पर शनिवार रात खबर आई कि भारत की मानुषी छिल्लर ने 17 साल बाद एक बार फिर देश के
लिए विश्व सुंदरी खिताब जीत लिया हैं और जो ग्रहण "मदर" टेरेसा जवाब
देने के बाद लग गया था वो जवाब के रूप में सिर्फ "मदर" बोलने के बाद हट
गया। थोड़ी देर बाद ऐसी खबरें चलनी शुरू हुई जैसे भारत की नही बल्कि हरियाणा की
लड़की ने जीता हैं। फिर कुछ भाइयों ने याद दिलाया कि हरियाणा में तो बहुत सारी
बिरादरी हैं और हमेशा की तरह इस बार भी देश का नाम एक जाट लड़की ने ही ऊंचा किया
हैं। 3 साल
पहले बनी हरियाणा सरकार ने भी उछलते कूदते 20 साल की मानुषी को अपने बेटी बचाओ
बेटी पढाओं अभियान की सफलता घोषित कर दिया। ये तो पढ़ा था कि सफलता के बहुत सारे
पिता होते हैं पर भारत में तो सफलता का धर्म, जात, प्रदेश और सरकार भी होती हैं।
खैर पूरा देश खुशी में डूबा था
क्योंकि एक बेटी ने देश का नाम ऊंचा कर दिया था। पर लाख टके का सवाल ये हैं कि
क्या इससे देश को कोई फायदा होगा? भारतीय महिलाओं की "शारीरिक" सुंदरता को एक बार
फिर से विश्व प्रसिद्धि मिलने पर न तो पर्यटन उद्योग बढ़ेगा और न ही किसी वस्तु या
सेवा का निर्यात बढ़ने वाला हैं। अगर किस्मत ने साथ दिया तो ज्यादा से ज्यादा
ऐश्वर्या और प्रियंका की तरह मानुषी भी एक सफल फ़िल्म अभिनेत्री बनकर फिल्मों के
साथ साथ शैम्पू, क्रीम, साबुन वगैरह के विज्ञापन
करके करोड़ों कमाएगी और लाखों करोड़ों महिलाएं उसको अपना आदर्श मानकर इन चीजों का और
भी बढ़ चढ़ कर इस्तेमाल करेंगी जिससे कुछ और तो बढ़ना हैं नही पर विदेशी चीजों की खपत
जरूर बढ़ेगी जिसका परिणाम उनके स्वास्थ्य और पैसों का नुकसान ही है।
खैर
खुशी के मौके पर समझदारी की बातें करके देशवासियों का मूड खराब करने की कोशिश
रोकते हुए बस यही कहना है कि कृपया करके कम से कम इस बार पर तो दंगल के हैंगओवर से
बाहर निकलकर "म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के" मत पेलिये क्योंकि ये
सिर्फ और सिर्फ छोरियों की ही प्रतियोगिता होती हैं जिसके नियमों के अनुसार छोरे
जेंडर बदलवा कर भी इसमें भाग नही ले सकते।