अब इसको आदत कह लें या जन्मजात स्वभाव, हम भारतीय बड़े ही स्वार्थ रहित जीव होते हैं जो अपना छोड़ हमेशा दूसरों के बारे में सोचते रहते हैं। कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने से पहले पूछना शुरू कर देते हैं कि कही नौकरी लगी या नही? नौकरी लगते ही पूछना शुरू की और शादी कब कर रहे हो? किसी तरह शादी हुई तो फिर सवाल आता हैं कि फैमिली प्लानिंग का क्या सीन हैं? किस्मत से अगर एक हो भी जाये तो कुछ समय बाद दूसरे के बारे में पूछना शुरू और अगर 2 हो गए तो कुछ समय के बाद बच्चों की पढ़ाई, नौकरी, शादी के बारे में सवालों की कतार लगी ही रहती हैं। अगर भाग्य ने साथ दिया और ये सब काम निपटाने के बाद भी जिंदा रहें तो भी एक "जिओ जैकपॉट" सवाल रह जाता हैं कि रिटायर कब हो रहे हो। हां एक बार इंसान रिटायर हो जाये तो फिर हम अपनी सब ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर उसको अपनी बची खुची ज़िंदगी जीने को छोड़ देते हैं।
हमारे देश का हवा पानी ही कुछ ऐसा हैं कि कुछ एक अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर तेज़ गेंदबाज़ दुबले पतले से ही रहे हैं। वेंकटेश प्रसाद, अजीत अगरकर, भुवनेश्वर कुमार भी छरहरी काया के स्वामी रहे हैं पर सिर्फ एक ही हैं जो इस शरीर को 2 दशक तक खींच पाए हैं। नेहरा जी ने 19 वर्ष की आयु में 1999 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल ना शुरू किया। अपने टेढ़े मेढे गेंदबाजी एक्शन और लहराते शरीर के साथ जिस स्पीड से गेंद फेंकते थे उससे कई बार विपक्षी बल्लेबाज ही नही अपनी टीम के खिलाड़ियों को भी चौंका देते थे। 15 साल बाद एशिया महाद्वीप से बाहर टेस्ट मैच जिताने का श्रेय भी इनको ही मिला पर शरीर ने साथ नही दिया और कुछ ही टेस्ट मैच के बाद चोट की वजह से ऐसे बाहर हुए कि टेस्ट क्रिकेट में वापिस ही नही लौटे।
फिर सोचा कि एकसाथ कई दिन की गेंदबाज़ी तो उनके शरीर से हो नही पायेगा तो एकदिवसीय ही खेल लेते हैं। उसमें भी प्रदर्शन अच्छा रहा। विश्वकप में किसी भारतीय गेंदबाज के द्वारा सबसे अच्छे प्रदर्शन और एकदिवसीय में सबसे तेज़ गेंदबाज का रिकॉर्ड अपने नाम किया। पर शरीर ने फिर हाथ खड़े कर दिए तो एक बार फिर से कई साल के लिए बाहर हो गए। फिर टी20 का ज़माना आया तो इनका शरीर बड़ा खुश हुआ और बोला ये वाला क्यों नही खेलते भाई। सिर्फ 4 ओवर ही तो फेंकने हैं। इतना तो हम संभाल लेंगे। नेहरा जी खुशी खुशी आईपीएल में घुस गए और धुंआधार गेंदबाजी किये। चयनकर्ताओं को लगा कि 20-20 इतना अच्छा खेल रहे हैं तो एकदिवसीय भी खेल लेंगे और ले लिया फिर से टीम में। जोश जोश में 2 साल शरीर ने भी साथ दिया पर फिर ऐसा टूटा कि नेहरा जी ने एकदिवसीय से हमेशा के लिए हाथ जोड़ लिए।
2 साल बाद फिर से आईपीएल में आये और बढ़िया प्रदर्शन के सहारे पिछले साल एक बार फिर से टी20 टीम में भी चुने गए। अब उनका शरीर भी खुश था और वो भी। दोनों पूरे तालमेल के साथ अच्छा खेल रहे थे पर यहां वही यक्ष प्रश्न उभर आया कि नेहरा जी रिटायर कब हो रहे हो। 18 साल हो गए खेलते हुए अब तो आराम करो, और लोगों को तो खेलने का मौका दो। नेहरा जी हैरान, 18 साल में सिर्फ 17 टेस्ट और 26 टी20 ही तो खेले हैं। लगभग इतनी ही सर्जरी हो चुकी हैं मेरी। पूरी ज़िंदगी औरों को ही खेलने का मौका दिया हैं। अभी कही जाकर मुझे मेरे मुताबिक खेल मिला हैं तो अब रिटायर हो जाऊं। पर तीर कमान से निकल चुका था, पुराने खिलाड़ियों से लेकर पत्रकारों तक प्रश्नचिह्न लगा चुके थे। टीम में चुनाव हुआ पर खिलाया नही गया। नेहरा जी समझ गए कि इनका हाल भी गांगुली सहवाग वाला ही होना हैं तो रिक्वेस्ट करके एक आखिरी मैच ही मांग लिया। बीसीसीआई ने हां भी कर दी हैं और नेहरा जी उसी दिन से सब प्रैक्टिस छोड़ छाड़कर अपने रिश्तेदारों के लिए वीआईपी टिकटों के जुगाड़ में लगे हुए हैं। अब नेहरा जी अपना आखिरी मैच मैदान पर खेलेंगे या रिश्तेदारों के साथ स्टेडियम में बैठ कर देखेंगे ये तो पता नही पर ये जरूर हैं कि आज के बाद जनता आशीष नेहरा जी की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपना पूरा ध्यान धोनी पर लगा सकेगी।