7 फरवरी 2015
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हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए आज यह दिवार परदो की तरह हिलने लगी , शर्त थी लेकिन की यह बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सङक, हर गली मे , हर नगर, हर गाँव मे , हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए । सिर्फ हंगामा खङा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है की ये सुरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने मे नही तो तेरे सीने मे सही, हो कही भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। दिल से......Jai hind ANUJ VERMAD
vastvikta se ot-prot sundar prastuti .
4 अप्रैल 2015