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दुर्गापूजा

18 अक्टूबर 2015

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अभी बुराई पर अच्छाई पर जीत के प्रतीकस्वरूप दुर्गापूजा और नवरात्रि चल रही है । इस अवसर पर भी अखवार में दुष्कर्मों की सूचनाएँ पढ़ कर बड़ा दुःख हो रहा है । क्या हो गया है उस देश को जहाँ नारी शक्ति का अवतार मानी जाती है । लगता है की कुछ लोगों के रूप में महिषाषुर ने फिर से जन्म लिया है । उन्हें ख़त्म करने के लिए फिर से शक्ति के अवतीर्ण होने की जरूरत है । समाज में नारियों के उत्थान के वावजूद आज भी नारी भोग विलास की सामग्री के तौर पर देखी जा रही है । यह उस मधयकालीन भारतीय मानसिकता का विकृत और बढ़ा हुआ स्वरुप सामने आ रहा है , जब नारियों को परदे के पीछे बाँध देने की साजिश शुरू हुई । यह तो सही भारतीय प्रवृति का परिचायक तो हरगिज नहीं है । आज एक गणना के अनुसार उच्च व्यापार करने वाली कंपनियों में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर कार्य करने वाली महिलाओं की संख्या भारत में सबसे अधिक है । यह विकासशील भारत की एक नई उभरती हुई तस्वीर है । भारतीय नारियों को हर समस्या को पार पाना होगा ताकि वह अपने बुलंद तस्वीर को और बुलंद कर सके । आज हर भारतीय महिला को अपने अन्दर शक्ति को जागृत करना होगा, ताकि मानवरुपी कोई महिषासुर उसकी मर्यादा का हनन न कर सके । माँ दुर्गा आपके अन्दर है । आपको विचार करना होगा कि जब संसार की सारी शक्तियाँ परास्त हो जाती हैं, तब - तब नारी शक्ति ने ही मानव जाति का उद्धार किया है । दुर्गा सिर्फ सृष्टिस्वरूपा और पालकस्वरूपा नहीं है, वह समय आने पर  वह संहारस्वरूपा भी होती है ।

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कहीं न कहीं तो तुम हो

18 अक्टूबर 2015
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जीवन के सफर में कब तुम्हें खो दियापता ही न चलावीरान राहों पर पत्ते खड़खड़ाए तोपता चला तुम साथ न होयह विश्वास नहीं कि तुम हो ही नहींतुम हो कहीं न सहीतुम छुटे खता मेरी कि योजना तुम्हारीसमझ नहीं पाया आज भीतेरा चेहरा देखने के भ्रम में पलकें उठाता हूँ राहें नजर आती कहती हैं हो कहीं तुम कहीं न कहीं तो तुम ह

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लिखना

22 अक्टूबर 2015
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लिखना कोई भावान्मेषी गीतया हो कोई सुमधुर संगीतदेने को एक अभिलाषारंग भरने को चित्र विलासाकवि की क्या पहचान कुची की राग वितानलेखक ने क्या रंग दिखायालेखनी ने जो कागज दमकाया

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