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कहीं न कहीं तो तुम हो

18 अक्टूबर 2015

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जीवन के सफर में कब तुम्हें खो दिया

पता ही न चला

वीरान राहों पर पत्ते खड़खड़ाए तो

पता चला तुम साथ न हो


यह विश्वास नहीं कि तुम हो ही नहीं


तुम हो कहीं न सही


तुम छुटे खता मेरी कि योजना तुम्हारी

समझ नहीं पाया आज भी


तेरा चेहरा देखने के भ्रम में पलकें 

उठाता हूँ राहें नजर आती कहती हैं 


हो कहीं तुम कहीं न कहीं तो तुम हो


सोचने की भी फुर्सत देती नहीं जिंदगी 

तुम्हें कैसे ढुँढुँ यह खबर नहीं


तुम्हीं ढुँढ लोगो मुझे कभी क्योंकि

हो तुम कहीं न कहीं ।


 

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चंद्रेश विमला त्रिपाठी

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सोचने की भी फुर्सत देती नहीं जिंदगी तुम्हें कैसे ढुँढुँ यह खबर नहीं तुम्हीं ढुँढ लोगो मुझे कभी क्योंकि हो तुम कहीं न कहीं । बहुत अच्छा लिखा |

20 अक्टूबर 2015

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जीवन के सफर में कब तुम्हें खो दियापता ही न चलावीरान राहों पर पत्ते खड़खड़ाए तोपता चला तुम साथ न होयह विश्वास नहीं कि तुम हो ही नहींतुम हो कहीं न सहीतुम छुटे खता मेरी कि योजना तुम्हारीसमझ नहीं पाया आज भीतेरा चेहरा देखने के भ्रम में पलकें उठाता हूँ राहें नजर आती कहती हैं हो कहीं तुम कहीं न कहीं तो तुम ह

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22 अक्टूबर 2015
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