आइए सबसे पहले हम जान लें कि एक-देश एक चुनाव से क्या तात्पर्य है। एक-देश एक चुनाव से तात्पर्य है कि सभी राज्यों की विधानसभा एवं केंद्र सरकार बनाने के लिए लोकसभा चुनाव एक साथ करवाए जाएं। सरल शब्दों में कहें तो एक ही बार में झंझट खत्म। यहां मैंने झंझट शब्द का प्रयोग बिलकुल भी चुनाव के लिए नहीं किया है क्योंकि निःसंदेह चुनाव एक बहुत अच्छी प्रक्रिया है और आज़ाद देश का एक अहम हिस्सा है। मैंने यहां झंझट शब्द का प्रयोग चुनाव की बार-बार होने वाली प्रक्रिया के लिए किया है, जिसे फाइनली मोदी सरकार की कैबिनेट की ओर से सर्वसम्मति से समाप्त किया जा रहा है। यह एक बहुत ही अहम कदम है और इस निर्णय से भारत को आगे चलकर बहुत फायदा होने वाला है। भारत में एक-देश एक चुनाव का न होना भारत की विकास यात्रा का सबसे बड़ा पत्थर था क्योंकि हमारे देश में एक वर्ष में ही कई बार चुनाव कराए जाते हैं, जिसमें पैसा पानी की तरह बहाया जाता है क्योंकि इसमें सुरक्षा के साथ-साथ तमाम सरकारी इंतजाम करने होते हैं। इसके अलावा समय की भी बर्बादी होती है और सरकारें भी अपना कार्य लगातार नहीं कर पातीं। ऐसा नहीं है कि भारत में एक-देश एक चुनाव पहली बार होने जा रहा है। आज़ादी मिलने के बाद 1951 से लेकर वर्ष 1967 तक देश में एक-देश एक चुनाव की प्रक्रिया से ही सरकारें बनती थीं, किंतु 1970 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर एक-देश एक चुनाव का क्रम तोड़ दिया और तय समय से 15 महीने पहले ही आम चुनाव करवा दिए। श्रीमती इंदिरा गांधी के इस निर्णय की भरपाई हमारा देश आज तक कर रहा था, जो फाइनली एंड होने वाला है। मैं यहां श्रीमती इंदिरा गांधी को गलत नहीं कह रही, निःसंदेह उन्होंने देश के हित में कई फैसले लिए हैं, लेकिन जो उनका एक-देश एक चुनाव की प्रक्रिया को भंग करने का निर्णय था, वह किसी भी तरह देश की तरक्की में योगदान नहीं दे सका। खैर, कहते हैं न कि इंसान बीते समय में की गई गलतियों से ही सीखता है। उसी तरह हमारा देश भी बीते समय की इस गलती को सुधारने जा रहा है और मैं उम्मीद करती हूँ कि भारत सरकार का यह निर्णय इस वर्ष का ही नहीं, बल्कि पिछले कई वर्षों का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय साबित होगा और हमारे देश को और बुलंदियों पर ले जाएगा। अंततः एक-देश एक चुनाव बंद होगी खर्चे की दुकान।