हाय अंकिता........
यहाँ....कौन ? उसी को तो पुकारा गया है ? विस्मित दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई तो ठीक अपने दाहिनी ओर आब्जर्वेशन एडवरटाइजिंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मि० मैथ्यू को खड़ा पा वह अप्रत्याशित खुशी से छलक आई। लेकिन दूसरे ही क्षण पता नहीं क्या हुआ कि उत्साह अचानक हाथ से छूटे गिलास-सा चूर-चूर हो गया। बड़े बेमन से प्रत्युत्तर में उसने हाथ ऊपर उठा दिया। हायऽ...! तनिक आगे बढ़ गए मेहता ने उसकी हाय पर पलटकर देखा तो सुखद अचरज से भरकर फुर्ती से उनकी ओर लौट आया।
लगभग मिनट-भर तक गर्मजोशी से हाथ मिलाते रहने के उपरांत मि० मैथ्यू को सहसा अपने साथ आई निकट खड़ी सुप्रसिद्ध मॉडल अलका गिरिराज का खयाल आया। क्षमा-याचना करते हुए उसने बड़ी मृदुता से उससे परिचय की औपचारिकता निभाई, अलका, अंकिता फ्रॉम फिल्मरस.....मेहता फ्रॉम फिल्मरस टू.....हाय ! उसकी सुपरिचित मुसकान के प्रत्युत्तर में अलका ने बेहद ठंडे अपरिचित स्मित के साथ उसकी ओर देखा जैसे कि वह अंकिता से पहली बार मिल रही हो और बावजूद इसके उसे मिलने में कतई दिलचस्पी न हो। अलका के इस अप्रत्याशित व्यवहार से आहत नहीं हुई। जानती है कि दोष अलका का नहीं है, सुप्रसिद्ध का है जिसकी फुनगी पर चढ़कर अकसर लोगों की स्मरण-शक्ति कमजोर हो जाती है और दृष्टि क्षीण। यही अलका है, जब भी उसकी एजेंसी आती थी इठलाती हुई दन्न से उसकी मेज पर आसीन हो जाती, अपने राम तो आज लंच तुम्हारे साथ ही करेंगे अंकू ! लाई क्या हो टिफिन में ?........ऊँऽऽ यह क्या घास-पात भर लाती हो ?.....किसी दिन भरवाँ करेले बनाकर लाओ न....और दिन बता दो.....अपन सीधे आकर धरना दे देंगे तुम्हारी मेज़ पर......
कब लौटीं ?
कौन, मैं ?.....गई कहाँ थीं ? मि० मैथ्यू के प्रश्न से वह एकबारगी चौंकी ।
क्यों ....तुम घर नहीं गई थीं ?
गई थी पर......उस गए हुए को तो महीनों होने आए ?
महीनों ?.....
जी महीनों और हुजूर....फॉर योर काइंड इंफारमेशन....घर से लौटते ही हमने आपको दस-बारह से कम फोन नहीं किए होंगे....न आप मिले, न प्रत्युत्तर में फ़ोन ही किया.....उलटा सेक्रेटरी से टलवाकर बेइज्जती और करवाई कि मैडम प्लीज.....आप बार-बार फोन करने की जहमत न उठाएँ....सर चाहेंगे तो आपको खुद ही फोन कर लेंगे.....संदेश पहुँचा दिया है आपका.....यह तो संयोग से आज आप टकरा गए वरना.....हमने तो मान लिया था कि अब हमारी भेंट नहीं होगी क्योंकि आप मिलना ही नहीं चाहते और दफ्तर पहुँचकर मैंने जबरन मिलना नहीं चाहा। वह कोशिश करके भी अपने को रुक्ष होने से बचा नहीं पाई। हालाँकि अपना व्यवहार स्वयं उसे अविवेकपूर्ण लगा। न यह स्थान आपसी मनमुटावों के निपटारे के लिए उपयुक्त है, न अचानक हिस्से में आई यह मुलाकात !
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