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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग - 2)

2 जुलाई 2022

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हाय अंकिता........

यहाँ....कौन ? उसी को तो पुकारा गया है ? विस्मित दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई तो ठीक अपने दाहिनी ओर आब्जर्वेशन एडवरटाइजिंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मि० मैथ्यू को खड़ा पा वह अप्रत्याशित खुशी से छलक आई। लेकिन दूसरे ही क्षण पता नहीं क्या हुआ कि उत्साह अचानक हाथ से छूटे गिलास-सा चूर-चूर हो गया। बड़े बेमन से प्रत्युत्तर में उसने हाथ ऊपर उठा दिया। हायऽ...! तनिक आगे बढ़ गए मेहता ने उसकी हाय पर पलटकर देखा तो सुखद अचरज से भरकर फुर्ती से उनकी ओर लौट आया।

लगभग मिनट-भर तक गर्मजोशी से हाथ मिलाते रहने के उपरांत मि० मैथ्यू को सहसा अपने साथ आई निकट खड़ी सुप्रसिद्ध मॉडल अलका गिरिराज का खयाल आया। क्षमा-याचना करते हुए उसने बड़ी मृदुता से उससे परिचय की औपचारिकता निभाई, अलका, अंकिता फ्रॉम फिल्मरस.....मेहता फ्रॉम फिल्मरस टू.....हाय ! उसकी सुपरिचित मुसकान के प्रत्युत्तर में अलका ने बेहद ठंडे अपरिचित स्मित के साथ उसकी ओर देखा जैसे कि वह अंकिता से पहली बार मिल रही हो और बावजूद इसके उसे मिलने में कतई दिलचस्पी न हो। अलका के इस अप्रत्याशित व्यवहार से आहत नहीं हुई। जानती है कि दोष अलका का नहीं है, सुप्रसिद्ध का है जिसकी फुनगी पर चढ़कर अकसर लोगों की स्मरण-शक्ति कमजोर हो जाती है और दृष्टि क्षीण। यही अलका है, जब भी उसकी एजेंसी आती थी इठलाती हुई दन्न से उसकी मेज पर आसीन हो जाती, अपने राम तो आज लंच तुम्हारे साथ ही करेंगे अंकू ! लाई क्या हो टिफिन में ?........ऊँऽऽ यह क्या घास-पात भर लाती हो ?.....किसी दिन भरवाँ करेले बनाकर लाओ न....और दिन बता दो.....अपन सीधे आकर धरना दे देंगे तुम्हारी मेज़ पर......

कब लौटीं ?

कौन, मैं ?.....गई कहाँ थीं ? मि० मैथ्यू के प्रश्न से वह एकबारगी चौंकी । 

क्यों ....तुम घर नहीं गई थीं ?

गई थी पर......उस गए हुए को तो महीनों होने आए ?

महीनों ?.....

जी महीनों और हुजूर....फॉर योर काइंड इंफारमेशन....घर से लौटते ही हमने आपको दस-बारह से कम फोन नहीं किए होंगे....न आप मिले, न प्रत्युत्तर में फ़ोन ही किया.....उलटा सेक्रेटरी से टलवाकर बेइज्जती और करवाई कि मैडम प्लीज.....आप बार-बार फोन करने की जहमत न उठाएँ....सर चाहेंगे तो आपको खुद ही फोन कर लेंगे.....संदेश पहुँचा दिया है आपका.....यह तो संयोग से आज आप टकरा गए वरना.....हमने तो मान लिया था कि अब हमारी भेंट नहीं होगी क्योंकि आप मिलना ही नहीं चाहते और दफ्तर पहुँचकर मैंने जबरन मिलना नहीं चाहा। वह कोशिश करके भी अपने को रुक्ष होने से बचा नहीं पाई। हालाँकि अपना व्यवहार स्वयं उसे अविवेकपूर्ण लगा। न यह स्थान आपसी मनमुटावों के निपटारे के लिए उपयुक्त है, न अचानक हिस्से में आई यह मुलाकात ! 

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रचनाएँ
एक ज़मीन अपनी
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विज्ञापन की चकाचौंध दुनिया में जितना हिस्सा पूँजी का है, शायद उससे कम हिस्सेदारी स्त्री की नहीं है। इस नए सत्ता-प्रतिष्ठान में स्त्री अपनी देह और प्रकृति के माध्यम से बाज़ार के सन्देश को ही उपभोक्ता तक नहीं पहुँचाती, बल्कि इस उद्योग में पर्दे के पीछे एक बड़ी ‘वर्क फ़ोर्स’ भी स्त्रिायों से ही बनती है। ‘एक ज़मीन अपनी’ विज्ञापन की उस दुनिया की कहानी भी है जहाँ समाज की इच्छाओं को पैना करने के औज़ार तैयार किए जाते हैं और स्त्री के उस संघर्ष की भी जो वह इस दुनिया में अपनी रचनात्मक क्षमता की पहचान अर्जित करने और सिर्फ़ देह-भर न रहने के लिए करती है। आठवें दशक की बहुचर्चित कथाकार चित्रा मुद्गल ने इस उपन्यास में उसके इस संघर्ष को निष्पक्षता के साथ उकेरते हुए इस बात का भी पूरा ध्यान रखा है कि वे सवाल भी अछूते न रह जाएँ जो विज्ञापन-जगत की अपेक्षाकृत नई संघर्ष-भूमि में नारी-स्वातंत्र्य को लेकर उठते हैं, उठ सकते हैं।
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एक ज़मीन अपनी- चित्रा मुद्गल (भाग -1 )

2 जुलाई 2022
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वह ठिठक गई। क्यारियों की चौड़ी मेड़ से एकदम धनुषाकार हो..... जब भी रंगोली आती है, उसके प्रवेश-द्वार के दोनों ओर चुने हुए गोटों और चट्टानों की सांधों में दुबकी-सी झाँकती कैक्टस की दुर्लभ प्रजातियाँ

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग - 2)

2 जुलाई 2022
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हाय अंकिता........ यहाँ....कौन ? उसी को तो पुकारा गया है ? विस्मित दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई तो ठीक अपने दाहिनी ओर आब्जर्वेशन एडवरटाइजिंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मि० मैथ्यू को खड़ा पा वह अप्रत्याशित ख

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-३ )

2 जुलाई 2022
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कैसी बातें कर रही हो ! मैथ्यू का स्वर अविश्वास से फुसफुसा आया।  अगले ही क्षण वह सतर्क-भाव से गलतफ़हमी बुहारता-सा बोला, देखो अंकिता ! टकरा गए वाली लीपा-पोती यह नहीं है। मैंने तुम्हें देखते ही पुकारा.

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-४ )

2 जुलाई 2022
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जाहिर था कि उसकी ओर से रत्ती-भर भी भाव न दिया जाना आज की नंबर वन मॉडल को नख से शिख तक अखर गया है। अखरता रहे। शायद उसने जान-बूझकर ही किया ताकि व्यक्ति स्वयं अवमानना की उस धुएँ-भरी कोठरी के भीतर हो सके

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-५ )

2 जुलाई 2022
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उसने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ उत्तर दिए नहीं जा सकते। किसी प्रकार पर्स में से रूमाल टटोलकर वह माथे, गले पर छलछला आए श्वेद बिंदुओं को पोंछने लगी। कुछ मेजें उसे कौतूहल से घूर रही हैं, वह स्वयं बड़ा अटपट

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उपन्यास के कुछ अंश

2 जुलाई 2022
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बारीकी से सोचने पर पुनः उसकी पूर्व धारणा स्पष्ट हुई है कि लोग उसके सामने खामोशी अपनाकर उसे बहकने ही नहीं देते अपितु बकायदा उकसाते हैं कि वो बहके और खूब बहके। जैसे किसी को अंधाधुंध पिलाने का मकसद यही ह

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