कैसी बातें कर रही हो !
मैथ्यू का स्वर अविश्वास से फुसफुसा आया।
अगले ही क्षण वह सतर्क-भाव से गलतफ़हमी बुहारता-सा बोला, देखो अंकिता ! टकरा गए वाली लीपा-पोती यह नहीं है। मैंने तुम्हें देखते ही पुकारा.....अगर तुमसे मिलना न चाहता तो कतराकर निकल गया होता.....तुम्हें क्या पता चलता कि....खैर, छोड़ो.....सच तो यह है कि मुझे तुम्हारे फोन की कोई सूचना नहीं मिली.....रहा उस सेक्रेटरी का रवैया, उसकी तो एजेंसी से छुट्टी हो गई-वह एक अलग पचड़ा है-कम घपले नहीं किए उसने.....हाँ, तुम्हारी दोस्त नीता ने ही मुझे यह सूचना दी थी कि फिलहाल तुम बम्बई नहीं लौट रहीं.....किसी व्यक्तिगत समस्या के चलते.......फिर नीता ने ही प्रस्ताव रखा था-अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो अंकिता का काम मैं आगे भी देखती रह सकती हूँ। वह तुम्हारी दोस्त थी, मुझे उसे रखने में भला क्या आपत्ति हो सकती थी ? काम वह बखूबी जानती ही है.....
अविश्वास और विस्मय से वह अस्थिर हो आई। वह तो अब तक इसी प्रभाव में थी कि मैथ्यू का फोन पर उपलब्ध न होने का मतलब है उसके लिए एजेंसी में- प्रवेश निषिद्ध। यह मैथ्यू क्या कह रहा है ! नीता ने यह झूठ क्यों गढ़ा ? जबकि वह निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार ही बंबई लौट आई थी और आते ही सबसे पहले नीता से ही मिली थी....:?
मैथ्यू, दो से ऊपर हो रहा है......अलका ने अपनी कलाई मोड़ी।
ओह ! लेट अस मूव...
अलका के याद दिलाते ही मैथ्यू कुछ इस कदर हड़बड़ाया जैसे उसे जरूरी काम का स्मरण करवाया गया हो। काटने का यह शिष्ट लहजा उसे गहरे तक खुरच गया। अधिकार-प्रदर्शन के ये तेवर भी।
सी यू अंकिता... उसके हाथों को गहरी आत्मीयता से छूकर मैथ्यू ने विदाई चाही।
बायऽऽ।
बायऽऽ।
उसने स्पष्ट महसूस किया कि अलका ने बड़ी अनिच्छा से उसकी ओर हाथ उठाकर विदा की औपचारिकता निबाही है। अलबत्ता मेहता पर उसने मुस्कुराहट परोसने की उदारता अवश्य बरती। उसने यह भी लक्ष्य किया था कि उसकी और मैथ्यू की बातचीत के दौरान वह निरंतर मेहता से ही बतियाती रही थी.....
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