बारीकी से सोचने पर पुनः उसकी पूर्व धारणा स्पष्ट हुई है कि लोग उसके सामने खामोशी अपनाकर उसे बहकने ही नहीं देते अपितु बकायदा उकसाते हैं कि वो बहके और खूब बहके। जैसे किसी को अंधाधुंध पिलाने का मकसद यही होता है कि वह बेजान होकर अपनी तहों को उगल दे और लोग तमाशे का आनंद उठाएँ।
"पक्की खबर नहीं।मगर उड़ते उड़ते पता लगा है कि एक आदमी गाड़ी के नीचे कटकर मर गया..."
"ओह! फिर गाड़ी और लेट हो सकती है।"
"आदमी मरा है, टक्कर थोड़े ही हुई है."
किसी ने कहा तो सुनकर उसके रोएँ खड़े हो गए। एक सिहरन-सी कौंधी देह में। तत्काल हट दी वहाँ से।कितनी विचित्र बात है! दारुण सत्य! आदमी के लिए आदमी की मौत एक खबर-भर है! सामान्य!महत्वपूर्ण है गाड़ी का विलम्ब होना!चिंता का विषय है गाड़ी का देरी से पहुँचना!
भीतर इतना कुछ अमूल्य पोटलियों में गठियाया हुआ पड़ा रहता है, जिसे उस भीतर को सौंप, स्मृतियों में सीलकर विस्मृत कर देते हैं हम… कि इन चीजों का अब जीवन या जीने से क्या वास्ता !… कभी अनायास किसी और प्रयोजन से किसी अन्य सूत्र की टटोलती हुई उंगलियाँ अचानक इन पोटलियों में से किसी एक से टकरा जाती हैं और… उसकी गाँठ अनायास ढीली पड़ जाती है… तब, उसके कुछ होने का अहसास आँखें खोलता है… भूमि में सुरक्षा की दृष्टि से गाड़कर बिसार दी गई उस अनमोल निधि की मानिंद, जिसके सहसा हाथ लग जाने से ऐसा महसूस होता है कि न जाने कितनी दुविधाओं, दुश्चिंताओं और कष्टों से मुक्ति के द्वार खुल गए हैं...