जाहिर था कि उसकी ओर से रत्ती-भर भी भाव न दिया जाना आज की नंबर वन मॉडल को नख से शिख तक अखर गया है। अखरता रहे। शायद उसने जान-बूझकर ही किया ताकि व्यक्ति स्वयं अवमानना की उस धुएँ-भरी कोठरी के भीतर हो सके जहाँ औरों को ढकेलकर वह उनकी औकात बताने की फिराक में उनका दम घुटता देखकर प्रताड़ना-आनंद उठाता है। अलका की कहाँ ले बैठी ? माना कि साल-भर पहले तक अलका के साथ अच्छा उठना-बैठना था पर मानसिक रूप से वह उससे इस कदर जुड़ी भी नहीं रही कि उसके आज के ये नक्शे उसे अस्त-व्यस्त कर जाएँ, लगे कि अचानक उससे उसका कुछ छिन गया है या छीन लिया गया है और वह एकाएक दरिद्र हो उठी है। मगर नीता !.......नीता से उसे ऐसे दोगले व्यवहार की उम्मीद सपने में भी नहीं थी। एक भरोसा होता है जो अचानक बीज से फूटकर अँकुआता हुआ टहनियों में फलने-फूलने लगता है। आखिर मैथ्यू झूठ क्यों बोलेगा ? मैथ्यू के नि:संकोच व्यवहार से राई-रत्ती आभास नहीं हुआ कि वह उससे झूठ बोलने की कोशिश कर रहा है या अपनी कुटिलता पर परदा डालने की खातिर नीता को लपेट रहा है ! कहीं कोई चालाकी होती तो क्या वह उसी पुरानी बेतल्लुफी से उसका सामना कर पाता ? बहुत बड़े पद पर है मैथ्यू। न उससे रौब खाने का सवाल उठता है, न संकोच-लिहाज का। सीधे-छुट्टी कर सकता था उसकी, आई एम सॉरी अंकिता। मेरे यहाँ अब तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है। काश ! ऐसा कुछ घट जाता। वह कुछ दिनों रो-बिसूरकर तनावमुक्त हो जाती। यंत्रणा की चक्की में तो न पिसती रहती निरंतर !.......
तलुवों के नीचे से उठा सर्द सुन्नाहट का बवंडर पिंडलियों से रेंगता हुआ अचानक बिच्छू के विष-सा पूरी देह में चुनचुनाने लगा। उसका पोर-पोर अपना न होने के अहसास से टूट रहा है.....कोई नियंत्रण नहीं......अब गिरी अब.......घबराकर उसने मेहता की बाँह पकड़ ली। अप्रत्याशित। एक दूरी उनके दरमियान सदैव खुदी रही है। मेहता ने अबूझ दृष्टि से उसकी ओर देखा। छुआ। छुअन के ठंडेपन से अधीर हो आया, "अंकू ! क्या हुआऽऽ ?" प्रत्युत्तर में उसने आँखों से संकेत-भर किया कि आगे चल पाना उसके लिए संभव नहीं; यहीं पास वाली किसी मेज पर बैठ जाना ठीक होगा।
उसे सहारे से कुर्सी पर बैठाकर मेहता ने पास आते बैरे को वहीं से इशारा कर तत्काल पानी ले आने का संकेत किया। फिर उसकी नम, ठंडी हथेलियों को सहलाते हुए बेसब्री से पूछा, यह अचानक.....क्या हो गया तुम्हें.....?
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