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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-४ )

2 जुलाई 2022

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जाहिर था कि उसकी ओर से रत्ती-भर भी भाव न दिया जाना आज की नंबर वन मॉडल को नख से शिख तक अखर गया है। अखरता रहे। शायद उसने जान-बूझकर ही किया ताकि व्यक्ति स्वयं अवमानना की उस धुएँ-भरी कोठरी के भीतर हो सके जहाँ औरों को ढकेलकर वह उनकी औकात बताने की फिराक में उनका दम घुटता देखकर प्रताड़ना-आनंद उठाता है। अलका की कहाँ ले बैठी ? माना कि साल-भर पहले तक अलका के साथ अच्छा उठना-बैठना था पर मानसिक रूप से वह उससे इस कदर जुड़ी भी नहीं रही कि उसके आज के ये नक्शे उसे अस्त-व्यस्त कर जाएँ, लगे कि अचानक उससे उसका कुछ छिन गया है या छीन लिया गया है और वह एकाएक दरिद्र हो उठी है। मगर नीता !.......नीता से उसे ऐसे दोगले व्यवहार की उम्मीद सपने में भी नहीं थी। एक भरोसा होता है जो अचानक बीज से फूटकर अँकुआता हुआ टहनियों में फलने-फूलने लगता है। आखिर मैथ्यू झूठ क्यों बोलेगा ? मैथ्यू के नि:संकोच व्यवहार से राई-रत्ती आभास नहीं हुआ कि वह उससे झूठ बोलने की कोशिश कर रहा है या अपनी कुटिलता पर परदा डालने की खातिर नीता को लपेट रहा है ! कहीं कोई चालाकी होती तो क्या वह उसी पुरानी बेतल्लुफी से उसका सामना कर पाता ? बहुत बड़े पद पर है मैथ्यू। न उससे रौब खाने का सवाल उठता है, न संकोच-लिहाज का। सीधे-छुट्टी कर सकता था उसकी, आई एम सॉरी अंकिता। मेरे यहाँ अब तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है। काश ! ऐसा कुछ घट जाता। वह कुछ दिनों रो-बिसूरकर तनावमुक्त हो जाती। यंत्रणा की चक्की में तो न पिसती रहती निरंतर !.......

तलुवों के नीचे से उठा सर्द सुन्नाहट का बवंडर पिंडलियों से रेंगता हुआ अचानक बिच्छू के विष-सा पूरी देह में चुनचुनाने लगा। उसका पोर-पोर अपना न होने के अहसास से टूट रहा है.....कोई नियंत्रण नहीं......अब गिरी अब.......घबराकर उसने मेहता की बाँह पकड़ ली। अप्रत्याशित। एक दूरी उनके दरमियान सदैव खुदी रही है। मेहता ने अबूझ दृष्टि से उसकी ओर देखा। छुआ। छुअन के ठंडेपन से अधीर हो आया, "अंकू ! क्या हुआऽऽ ?" प्रत्युत्तर में उसने आँखों से संकेत-भर किया कि आगे चल पाना उसके लिए संभव नहीं; यहीं पास वाली किसी मेज पर बैठ जाना ठीक होगा। 

उसे सहारे से कुर्सी पर बैठाकर मेहता ने पास आते बैरे को वहीं से इशारा कर तत्काल पानी ले आने का संकेत किया। फिर उसकी नम, ठंडी हथेलियों को सहलाते हुए बेसब्री से पूछा, यह अचानक.....क्या हो गया तुम्हें.....?

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रचनाएँ
एक ज़मीन अपनी
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विज्ञापन की चकाचौंध दुनिया में जितना हिस्सा पूँजी का है, शायद उससे कम हिस्सेदारी स्त्री की नहीं है। इस नए सत्ता-प्रतिष्ठान में स्त्री अपनी देह और प्रकृति के माध्यम से बाज़ार के सन्देश को ही उपभोक्ता तक नहीं पहुँचाती, बल्कि इस उद्योग में पर्दे के पीछे एक बड़ी ‘वर्क फ़ोर्स’ भी स्त्रिायों से ही बनती है। ‘एक ज़मीन अपनी’ विज्ञापन की उस दुनिया की कहानी भी है जहाँ समाज की इच्छाओं को पैना करने के औज़ार तैयार किए जाते हैं और स्त्री के उस संघर्ष की भी जो वह इस दुनिया में अपनी रचनात्मक क्षमता की पहचान अर्जित करने और सिर्फ़ देह-भर न रहने के लिए करती है। आठवें दशक की बहुचर्चित कथाकार चित्रा मुद्गल ने इस उपन्यास में उसके इस संघर्ष को निष्पक्षता के साथ उकेरते हुए इस बात का भी पूरा ध्यान रखा है कि वे सवाल भी अछूते न रह जाएँ जो विज्ञापन-जगत की अपेक्षाकृत नई संघर्ष-भूमि में नारी-स्वातंत्र्य को लेकर उठते हैं, उठ सकते हैं।
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एक ज़मीन अपनी- चित्रा मुद्गल (भाग -1 )

2 जुलाई 2022
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वह ठिठक गई। क्यारियों की चौड़ी मेड़ से एकदम धनुषाकार हो..... जब भी रंगोली आती है, उसके प्रवेश-द्वार के दोनों ओर चुने हुए गोटों और चट्टानों की सांधों में दुबकी-सी झाँकती कैक्टस की दुर्लभ प्रजातियाँ

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग - 2)

2 जुलाई 2022
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हाय अंकिता........ यहाँ....कौन ? उसी को तो पुकारा गया है ? विस्मित दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई तो ठीक अपने दाहिनी ओर आब्जर्वेशन एडवरटाइजिंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मि० मैथ्यू को खड़ा पा वह अप्रत्याशित ख

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-३ )

2 जुलाई 2022
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कैसी बातें कर रही हो ! मैथ्यू का स्वर अविश्वास से फुसफुसा आया।  अगले ही क्षण वह सतर्क-भाव से गलतफ़हमी बुहारता-सा बोला, देखो अंकिता ! टकरा गए वाली लीपा-पोती यह नहीं है। मैंने तुम्हें देखते ही पुकारा.

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-४ )

2 जुलाई 2022
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जाहिर था कि उसकी ओर से रत्ती-भर भी भाव न दिया जाना आज की नंबर वन मॉडल को नख से शिख तक अखर गया है। अखरता रहे। शायद उसने जान-बूझकर ही किया ताकि व्यक्ति स्वयं अवमानना की उस धुएँ-भरी कोठरी के भीतर हो सके

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एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल (भाग-५ )

2 जुलाई 2022
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उसने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ उत्तर दिए नहीं जा सकते। किसी प्रकार पर्स में से रूमाल टटोलकर वह माथे, गले पर छलछला आए श्वेद बिंदुओं को पोंछने लगी। कुछ मेजें उसे कौतूहल से घूर रही हैं, वह स्वयं बड़ा अटपट

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उपन्यास के कुछ अंश

2 जुलाई 2022
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बारीकी से सोचने पर पुनः उसकी पूर्व धारणा स्पष्ट हुई है कि लोग उसके सामने खामोशी अपनाकर उसे बहकने ही नहीं देते अपितु बकायदा उकसाते हैं कि वो बहके और खूब बहके। जैसे किसी को अंधाधुंध पिलाने का मकसद यही ह

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