1 सितंबर 2017 को अजय देवगन की फ़िल्म 'बादशाहो' रिलीज़ हो रही है. ये फ़िल्म इस मायने में भी खास है कि इस फ़िल्म के सहारे एक ऐसे विवाद को उठाने की कोशिश की गई है, जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के सबसे बड़े विवादों में से था. फ़िल्म के ट्रेलर में दिखाया गया है कि सरकार जयपुर के महल में छिपे खज़ाने को खोदने का आदेश देती हैं, पर रियासत की रानी का खास आदमी यानि अजय देवगन अपने साथियों के साथ मिलकर सरकार के इस कदम को रोकने की कोशिश करता है. फ़िल्म की पूरी कहानी इस खज़ाने को लेकर इर्द-गिर्द बुनी गई है.
सच या अफ़वाहें?
दरअसल इस मामले में सच से ज़्यादा कई किस्से, किंवदंती बन चुके हैं. इंदिरा गांधी से लेकर जयपुर के कई लोगों के बयान इस मामले में अलग-थलग रहे हैं.
पहली किंवदंती के अनुसार ये माना जाता रहा है कि अकबर के सेनापति और रक्षामंत्री राजा मानसिंह, अकबर के आदेश पर अफ़गानिस्तान गए थे. उन्होंने अफ़गानिस्तान को फ़तह किया और वे वहां से काफी खज़ाना हासिल करने में भी कामयाब रहे. ये खज़ाना उन्होंने पूरा अकबर को नहीं लौटाया और माना जाता है कि उसे जयगढ़ के किले में कहीं गाड़कर रखा गया है. समय बीतता गया, जयपुर राजघराने की पीढ़ियां भी आगे बढ़ती गयीं और खज़ाना भी वहीं दफ़न रहा. अंग्रेज़ों के ज़माने में भी इस बात को लेकर चर्चा हुई थी लेकिन इस पर कोई कार्यवाई नहीं हुई.
ब्रिटिश काल में भी इसकी चर्चा थी लेकिन कभी इसे ढूंढ़ने की कोशिश नहीं हुई. लेकिन इंदिरा गांधी के राज में जब महारानी गायत्री देवी उनकी आंख की किरकिरी बन गईं तब इंदिरा ने सेना भेजकर खुदाई करवाई. सेना के बड़े वाहनों के लिए दिल्ली जयपुर हाइवे को तीन दिन के लिए बंद रखा गया था. ऐसा माना जाता है कि इन वाहनों में वो खज़ाना भरा हुआ था जो खुदाई के दौरान निकला था. मगर अब भी ये राज़ कायम है.
वहीं दूसरी किंवदंती के मुताबिक, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जयपुर के पास आमेर में रिसायत में सेना को भेजा था. सेना को आदेश था कि शाही परिवार द्वारा छिपाया गए हीरे-जवाहरात और सोने के सिक्कों को ढूंढकर वापस लाना है. जयपुर की महारानी गायत्री देवी को इमरजेंसी के दौरान जेल में डाल दिया गया था. तीन महीने में उनकी कई प्रॉपर्टी को खंगाला गया. लेकिन वहां उनको कुछ नहीं मिला. तीन महीने बाद आर्मी वापस लौट आई और इंदिरा गांधी ने बयान दिया कि कोई खजाना नहीं मिला है. हालांकि कई जयपुर गाइड, सैलानियों को ये कहानियां सुनाते हैं कि इस तलाश के बाद कई टन सोना मिला था.
हालांकि जो तथ्य है वो यही है कि 1976 में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने सेना को आदेश दिया था कि जयगढ़ किले में छिपे खज़ाने की तलाशी ली जाए. उस समय जयपुर के राजशाही घराने का प्रतिनिधित्व का दायित्व राजा सवाई मान सिंह और उनकी पत्नी गायत्री देवी के पास था. गायत्री देवी, कान्ग्रेस पार्टी कैंडिडेट को तीन बार हरा भी चुकी थीं. 1975 में उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी का भी विरोध किया था. ज़ाहिर है, गायत्री देवी इंदिरा गांधी की आंख की किरकिरी बन चुकी थीं. इमरजेंसी के दौरान गायत्री देवी को जेल भी भेजा गया था. गायत्री देवी ने जब इस छापेमारी का विरोध किया तो इंदिरा ने किले में सेना को भी भेजा था. इस घटना की आम जन में खूब चर्चा हुई थी और गायत्री देवी की ऑटोबायोग्राफ़ी - A Princess Remembers में भी इस घटना का ज़िक्र हुआ था.
ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. जब उन्हें इस खज़ाने के बारे में पता चला, तो उन्हें लगा कि पाकिस्तान को भी इस खज़ाने का हिस्सा मिलना ही चाहिए.
11 अगस्त, 1976 को जुल्फ़िकार भुट्टो ने इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखा :
'आपकी सरकार जयगढ़ में खजाने की खोज कर रही है. पाकिस्तान भी इस खज़ाने का हकदार है क्योंकि दोनों देशों के अलग होने के समय ऐसी किसी दौलत की जानकारी नहीं थी. विभाजन के पूर्व के समझौते के अनुसार, जयगढ़ की दौलत में पाकिस्तान का भी हिस्सा बनता है. हमें उम्मीद है कि खुदाई के बाद मिले खज़ाने में पाकिस्तान का जो हिस्सा बनता है वो उसे बगैर किसी शर्तों के मिल जाएगा.’
इंदिरा गांधी ने इस चिट्ठी का कोई जवाब ही नहीं दिया था. इसके बाद अगले तीन महीने सेना खुदाई में लगी रही लेकिन सेना के हाथ भी कुछ नहीं लगा. तब इंदिरा गांधी ने 31 दिसम्बर 1976 को भुट्टो को लिखे अपने जवाब में कहा था
'मैंने कानूनी विशेषज्ञों को आपके दावे पर जांच के लिए कहा था. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का इस खज़ाने पर कोई दावा नहीं बनता. वैसे भी जयगढ़ में खजाने नाम की कोई चीज ही नहीं मिली है.'
हालांकि, एक अरबी पुस्तक ‘तिलिस्मात-ए-अम्बेरी’ में दावा किया गया है कि जयगढ़ में सात टांकों के बीच हिफ़ाजत से दौलत छुपाई गई थी. वहीं कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इस किले में छिपे खज़ाने को सवाई जय सिंह द्वितीय ने जयपुर के विकास के लिए लगाया था. लेकिन जयगढ़ किले की तरह ही इसके खज़ाने से जुड़े किस्से और वास्तविकताएं आज भी रहस्यमयी बने हुए हैं.